पाटली गामा संबंध में भगवान बुद्ध ने क्या कहा था
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बुद्ध दर्शन के मुख्य तत्व : चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएं, अनात्मवाद और निर्वाण।
संप्रदाय : भगवान बुद्ध के समय किसी भी प्रकार का कोई पंथ या संप्रदाय नहीं था किंतु बुद्ध के निर्वाण के बाद द्वितीय बौद्ध संगति में भिक्षुओं में मतभेद के चलते दो भाग हो गए। पहले को हिनयान और दूसरे को महायान कहते हैं। महायान अर्थात बड़ी गाड़ी या नौका और हिनयान अर्थात छोटी गाड़ी या नौका। हिनयान को ही थेरवाद भी कहते हैं। महायान के अंतर्गत बौद्ध धर्म की एक तीसरी शाखा थी वज्रयान। झेन, ताओ, शिंतो आदि अनेक बौद्ध संप्रदाय भी उक्त दो संप्रदाय के अंतर्गत ही माने जाते हैं।
बौद्ध धर्मग्रंथ : बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। त्रिपिटक के तीन भाग है- विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्मपिटक। उक्त पिटकों के अंतर्गत उपग्रंथों की विशाल श्रृंखलाएं हैं। सुत्तपिटक के पांच भागों में से एक खुद्दक निकाय की पंद्रह रचनाओं में से एक है धम्मपद। धम्मपद ज्यादा प्रचलित है।
बुध के गुरु और शिष्य : बुद्ध के प्रमुख गुरु थे- गुरु विश्वामित्र, अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त आदि और प्रमुख शिष्य थे- आनंद, अनिरुद्ध, महाकश्यप, रानी खेमा (महिला), महाप्रजापति (महिला), भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, उपाली आदि।
प्रमुख प्रचारक : अंगुलिमाल, मिलिंद (यूनानी सम्राट), सम्राट अशोक, ह्वेन त्सांग, फा श्येन, ई जिंग, हे चो आदि।
आठ स्तूप : तथागत के निर्वाण के पश्चात उनके शरीर के अवशेष (अस्थियां) आठ भागों में विभाजित हुए और उन पर आठ स्थानों में आठ स्तूप बनाए गए हैं। जिस घड़े में वे अस्थियां रखी थीं, उस घड़े पर एक स्तूप बना और एक स्तूप तथागत की चिता के अंगार (भस्म) को लेकर उसके ऊपर बना। इस प्रकार कुल दस स्तूप बने।
आठ मुख्य स्तूप : कुशीनगर, पावागढ़, वैशाली, कपिलवस्तु, रामग्राम, अल्लकल्प, राजगृह तथा बेटद्वीप में बने। पिप्पलीय वन में अंगार स्तूप बना। कुंभ स्तूप भी संभवतः कुशीनगर के पास ही बना। इन स्थानों में कुशीनगर, पावागढ़, राजगृह, बेटद्वीप (बेट-द्वारका) प्रसिद्ध हैं। पिप्पलीय वन, अल्लकल्प, रामग्राम का पता नहीं है। कपिलवस्तु तथा वैशाली भी प्रसिद्ध स्थान हैं।
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लुम्बिनी : गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले नेपाल के लुम्बिनी वन में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन हुआ। शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट उत्तरप्रदेश के 'ककराहा' नामक ग्राम से 14 मील और नेपाल-भारत सीमा से कुछ दूर पर नेपाल के अंदर रुमिनोदेई नामक ग्राम ही लुम्बिनी ग्राम है, जो गौतम बुद्ध के जन्म स्थान के रूप में जगतप्रसिद्ध है। कपिलवस्तु में एक स्तूप था, जहां भगवान बुद्ध की अस्थियां रखी थीं।
उनकी माता कपिलवस्तु की महारानी महा मायादेवी जब अपने नैहर कोलिय गणराज्य की राजधानी देवदह जा रही थीं, तो उन्होंने रास्ते में लुम्बिनी वन में एक शाल वृक्ष के नीचे बुद्ध को जन्म दिया। कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास उस काल में लुम्बिनी वन हुआ करता था। बुद्ध का जन्म शाक्य क्षत्रिय कुल में हुआ था।
उनका जन्म नाम 'सिद्धार्थ' रखा गया। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे और उनका सम्मान नेपाल ही नहीं, समूचे भारत में था। सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया, क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था।
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