पाटलिपुत्र नगर से घोड़ी दूर के एक आश्रम में कुछ दूसरा ही माहौल था। आश्चम एक टीले पर था। वहाँ बड़ी चहल-पहल
यौ, किन या चहल-पहल कुछ दूसरे प्रकार की थी। यह आश्रम भी कुछ अलग किस्म का था। टीले पर बसे उस
आश्चम के नये-चौड़े आँगन में ताये, पीतल और लकड़ी के तरह-तरह के यंत्र रखे हुए थे। उनमें से कुछ यंत्र गोल थे,
कुछ कटोरे-जैसे, कुछ वर्तुलाकार और कुछ शंकु के आकार के।
वस्तुतः वह एक वेधशाला थी। उस दिन उन यंत्रों के इर्द-गिर्द कुछ प्रसिद्ध ज्योतिषी और बहुत से विद्यार्थी एकत्र हुए
थे। वहाँ के ज्योतिषियों ने हिसाब लगाकर पहले से ही भविष्यवाणी की थी कि हीक किस समय ग्रहण लगेगा, कहाँ-कही
दिखाई देगा और कितने समय तक रहेगा। आज उन्हें देखना था कि उनका हिसाब ठीक निकलता है या नहीं। इसलिए
सभी उन्मुकता से ग्रहण के क्षण का इंतज़ार कर रहे थे। कुछ आचार्य और पियार्थी चर्चा कर रहे थे कि ग्रहण क्यों
है। कुछ कह रहे थे, "धर्मग्रंथों में लिखा है कि ग्रहण के समय राहु नाम का राक्षस सूर्य और चंद्र को निगलता
है। हमें धर्मग्रयों की बातों पर यकीन करना चाहिए।"
वेधशाला कहाँ बनाई गई थी?
( ग्रहण के संबंध में धर्मग्रंथों की मान्यता क्या है?
(ii) आश्रम का दृश्य परंपरागत आश्रम से किस तरह भिन्न था?
(iv) वेधशाला में कौन कौन एकत्रित हुए थे और क्यों?
(1) ज्योनिधियों ने किस बात की भविष्यवाणी कर रखी थी? यह धर्मगंधों से कितनी समानता रखती थी?
(४) उपर्युक्त गदयाश का एक उपयक्त शीर्षक दीजि )
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i). धर्म ग्रंथों में लिखा है कि ग्रहण के समय राहु नाम का राक्षस सूर्य और चन्द्र को निगलता है ।
ii). टीले पर बसे उस आश्रम में नये चौड़े आंगन में ताये , पीतल और लकड़ी के तरह तरह के यंत्र रखें थे उनमें से कुछ यंत्र गोल थे , कुछ कटोरे जैसे, कुछ वृतालाकार और कुछ शंकु के आकार के ।
iii). कुछ प्रसिद्ध ज्योतिषी और बहुत से विधार्थी एकत्रित हूए थे
iv). ज्योतिषीयों ने भविष्यवाणी कर रखी थी कि किस समय ग्रहण लगेगा , कहां दिखाई देगा और कितने समय तक रहेगा
v) .I think इस गद्यांश का शीर्षक "रुढ़िवादी विचारधारा " हो सकता है ।
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