पाठ-1
ईशस्तुति
सत्ता तुम्हारी भगवन जग में समा रही है।
तेरी दया सुगन्धि हर गुल से आ रही है।।1।।
रवि चन्द्र और तारे तूने बनाए सारे।
इन सब में ज्योति तेरी इक जगमगा रही है।।2।।
विस्तृत वसुन्धरा पर सागर बहाए तूने।
तह जिनकी मोतियों से अब जगमगा रही है।।3।।
दिन-रात प्रातः सन्ध्या मध्याहून भी बनाया।
हर ऋतु पलट-पलट कर यौवन दिखा रही है।।4।।
सुन्दर सुगन्धि वाले पुष्पों में रंग तेरा।
यह ध्यान फूल पत्ती तेरा दिला रही है।।5।।
हे ब्रह्म विश्वकर्ता, वर्णन हो तेरा कैसे।
जलथल में तेरी महिमा, हे ईश छा रही है।।6।।
भक्ति तुम्हारी भगवन क्यों कर हमें मिलेगी।
माया तुम्हारी स्वामी हमको भ्रमा रही है।।7।।
देवी चरण शरण है, तुझसे यही विनय है।
हो दूर वह अविद्या हमको भुला रही है।। 8 ।।
भाव : परमेश्वर ही सर्वव्यापक, दयालु, सूर्य-चन्द्रादि का प्रकाशक,
पृथ्वी, समुद्र, दिन, रात, प्रातः, सन्ध्या, मध्याह्न तथा ऋतुओं का निर्माता
नैतिक शिक्षा (कक्षा-7)/5
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1. भगवान की सत्ता सम्पूर्ण जग में समाई हुई है।
2. प्रभु के दया की सुगंध हर गुल से आ रही है।
3. भक्त ने भगवान से विनय की है की उसकी अविद्या दूर हो।
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