पाठ 1 पुल बनी थी माँ summary
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पुल बनी थी माँ : बदलते पारिवारिक संबंधों की आलोचना
कविता ‘पुल बनी थी माँ’ बूढ़े-बुजुर्गों के प्रति उत्तरदायित्वों से विमुख होती जा रही नई पीढ़ी के व्यवहार को दर्शाता है। कविता में माँ के पुल होने और पुल से बोझ बनने की हालत पर चर्चा की गई है।
माँ भाइयों के बीच पुल बनी थी। पुल दो किनारों को आपस में जोड़ता है। माँ परिवार के हर सदस्य को आपस में जोड़नेवाली कड़ी रही। इस माँ रूपी पुल से बच्चों की जिंदगी रूपी रेल गाड़ी बेरोकटोक चलती रही। पिता के चल बसने के बाद भी भाइयों के बीच माँ पुल बनी रही। माँ धीरे-धीरे टूटने लगी। यानी मानसिक रूप से वह धीरे-धीरे कमज़ोर होती गई। उसके शरीर पर बुढ़ापे का असर दिखने लगा। वह शारीरिक रूप से भी
कमज़ोर होने लगी थी। एक ही बात को माँ बार-बार कहने लगी। बच्चे इस आदत को उनके बढ़ते हुए बुढापे की निशानी मानकर जीने लगे। उसकी आवाज़ कमज़ोर होती रही। वह धीरे-धीरे दुर्बल होती रही।
बच्चों के प्रति प्यार और दुलार से रहनेवाली माँ एक दिन बच्चों के आश्रय में आ गईं। धीरे-धीरे बच्चों के सशक्त कंधों में माँ बोझ बन गईं। जब तक बूढ़ी माँ जीवित रही, बच्चे माँ की देखरेख की ज़िम्मेदारी एक दूसरे के कंधों पर डालते रहे। सारी जिंदगी बच्चों के लिए जीनेवाली माँ बुढ़ापे में बच्चों के लिए भार बन गई। पर माँ का मातृत्व बच्चों की इस कठिनाई को सह नहीं पाया। वह स्वयं उनके कंधों से उतर गई मतलब उसका अंतिम प्रयाण हो गया। माँ के अभाव में बच्चे बेसहारे बन गए। कविता में प्रयुक्त शब्द, कथन और मुहावरे- वृषभ कंधा, कंधा बदलना, उतर गए कंधे आदि कविता को और सशक्त बनाया है।