पाठ-14
शरणागति
(हे पिता और कोई सहारा नहीं।
पतित पावन प्रमो आसरा दो हमें।
न तो विद्या, न बुद्धि, न भक्ति का बल
बिन तुम्हारी दया के न सकते संभल
तुमने किस-किस को स्वामी उबारा नहीं ॥2॥
सारे जन्मों में भगवन् भटकता रहा
मुक्ति पाने को हरदम तरसता रहा।
यह विनती है मेरी पिता मान लो,
हाथ आगे किसी के पसारा नहीं ॥3॥
अभ्यास
(1) भक्त पतितपावन प्रभु से क्या मांग रहा है?
(2) आत्मा पर कैसा मल चढ़ा हुआ है?
( भक्त क्या पाने के लिए तरसता रहा है?
( भक्त ने किन-किन बातों में अपनी बलहीनता प्रकट की है?
(5) भक्त ने केवल भगवान् की ही शरण क्यों ली है?
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भक्त पतितपावन प्रभु से क्या मांग रहा है?
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