पाठ 19
दोहावली
ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय ॥
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब ॥
विद्या धन उद्यम बिना, कहो जु पावे कौन।
बिना डुलाये ना मिले, ज्यों पंखे की पौन ॥
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥
बोली एक अमोल है, जो कोई बोलै जानि
हिये तराजू तौलि कै, तब मुख बाहर आनि ।।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागै अति दूर॥
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटि छवाय।
पावन बिना, निरमल करे सुभाय॥
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