Hindi, asked by SonaBhardwaj, 7 months ago

पाठ-4
महाभारत के युद्ध में कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव, पाण्डव सेनाएं युद्ध के
हैं। वे अर्जुन के रथ को लेकर शत्रु सेना की स्थिति जानने के लिए एक
अर्जुन अपने सामने युद्ध के लिए विपक्ष में खड़े अपने सगे-सम्बन्धियों
गीता के दो श्लोक
लिए आमने-सामने खड़ी हैं। श्रीकृष्ण जी वीर अर्जुन के सारथी के रूप में
ऊँचे स्थान पर जाते हैं, जहाँ से दोनों पक्ष की सेनाएँ दिखाई पड़ रही हैं।
को देखकर मोह (अपनों से आसक्ति) से घिरकर हताश और व्याकुल हो
जाते हैं। वे श्रीकृष्ण जी से कहते हैं कि “हे केशव! मैं सब कुछ छोड़कर
जंगल चला जाऊँगा, संन्यास ले लूँगा, सभी दुःख झेल लूँगा, किन्तु
अपने सगे-सम्बन्धियों के खून से हाथ रँगकर राजसुख नहीं भोग
सकता। मैं यह युद्ध कदापि नहीं कर सकता।"
श्लोक 1-श्रीकृष्ण जी अर्जुन को मोह में फँसा देखकर उसे कर्म
का महत्त्व बताते हुए गीता का उपदेश देते हुए कहते हैं कि हे अर्जुन!
कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफल हेतु भूर्मा ते समोस्त्वकर्मणि॥ अ./2/47
शब्दार्थ-कर्मण्येव-कर्म में ही, ते-आपका, अधिकार-अधिकार,
मा-नहीं, फलेषु-फल में, कदाचन-कभी भी, तेसङ्गोस्त्व-तुम्हारी प्रीति,
कर्मफल हेतु भूमा-कर्म के फल की प्राप्ति में।
अर्थ-हे अर्जुन! मानव का अधिकार केवल कर्म करने में है, फल
प्राप्ति में कभी भी नहीं है, आप कर्मों के फल की वासना वाले मत हों,
आपकी प्रीति केवल कर्म करने में हो। युद्ध के मैदान में एक क्षत्रिय का
केवल यही धर्म व कर्म है कि वह शत्रु का अधिक से अधिक विनाश
करे। इसलिए मोह त्यागकर युद्ध करो।
श्लोक 2-श्रीकृष्ण जी अर्जुन का मोह दूर करने के लिए उन्हें आत्मा
के शाश्वत (सदा रहने वाली) और शरीर के नश्वर (निश्चित रूप से नाश
होने वाला) होने का बहुत ही सुन्दर व शिक्षाप्रद उदाहरण देते हुए कहते हैं-
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यानि संयाति नवानि देही॥ अ./2/22
शब्दार्थ-वासांसि-वस्त्र, जीर्णानि-फटे-पुराने, यथा-जिस प्रकार,
विहाय-उतारकर, नवानि-नए, गृहणाति-धारण करना, नरोऽपराणि-मनुष्य
व कोई भी प्राणी तथा उसी प्रकार, संयाति-धारण करना, देही-जीवात्मा।
अर्थ-श्रीकृष्ण जी कहते हैं, “हे अर्जुन! जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपने
फटे-पुराने वस्त्रों को उतारकर नए वस्त्र धारण कर लेता है उसी प्रकार यह
आत्मा (शाश्वत) इस पुराने शरीर (नश्वर) को छोड़कर नया शरीर धारण
कर लेती है। आत्मा का शरीर से मिलन जन्म और पृथक् होना मृत्यु है।
अतः आपका मोह करना उचित नहीं है। आप अपने क्षत्रिय धर्म
का पालन करें। अपने शत्रु का अधिक से अधिक विनाश करें। यही
क्षत्रिय का युद्ध के मैदान में धर्म व कर्म है।
अभ्यास
1. गीता में कौन किसको उपदेश दे रहा है?
2. अर्जुन ने श्रीकृष्ण जी को युद्ध के लिए क्यों मना कर दिया?
3. मनुष्य का अधिकार किसमें है और किसमें नहीं?
4. श्लोक में आत्मा व शरीर को कैसा बताया गया है?
5. युद्ध के मैदान में एक क्षत्रिय का क्या धर्म है?
6. शब्दार्थ लिखिए-फलेषु, वासांसि, जीर्णानि, नवानि, गृह्णाति,
संयाति, देही, कर्मण्येव, कदाचन, कर्मफल हेतु भूर्मा, ते सङ्गोस्त्वकर्मणि।
नैतिक शिक्षा (कक्षा-8) / 15
14 / नैतिक शिक्षा (कक्षा-8)



(Is path se do MCQ que banae and unke answers bhi jldi in hindi please)​

Answers

Answered by rakeshpuri1977
1

Answer:

mughe nahi patha hai.........

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