पाठ -4
PATTER
शहम दोहे
कविता
रणे, बनत
बहुत
कीह हम सपोत
रीत
पपीत कसौटी जेसे ओहीमाचे भीतमा
रहमत निज मन की बधामनीराखोया
मुनि ठिले लोग सब बॉटिन लेहे व्याया
जेराहम
उलम प्रकृति
कर सवत ऊरंग,
चंदन विष
व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग ।।3।।
दीत सबन को लवत है दाह लखै त डोया
जो शलम पीनहिं ला, दीनवा
दीनबंधु सम यापा
मित देखि बडने
डीर
जन आते सुई, उहा करे तरवार का
।
लघु
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