पाठ बाज और साँप पर कविता लिखे
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मैंने कविता लिख दो है
झरने की नदी के किनारे
जो समुद्र में मिल जाए
रहता वहां एक सर्प
जो सोचा खुद को रक्षित
तभी अचानक गिरा कुछ थल पर
जो था एक घायल बाज
देख उसे घबराया सर्प
डर के छुपा भाग
लघु से युक्त को देख कर
आई उसे सांस में सांस
आकर उससे कहा
कि तेरी मृत्यु है पास
बाद में उसे जवाब दिया
जिंदगी के किस्से सुनाए
आसमान में उड़ने का आनंद बताया
जिसे सुनकर सांप ललचाया
मरने से पहले
बहादुर बाज ने भरी उड़ान
लेकिन गिर के मर गया
नदी के हिलोर में
सांप ने यह देखकर बुझा
आनंद आसमान का
कोशिश मैं लग गया
आसमान की उड़ान की
असफल होकर
कहा आसमान को सामान्य
हार कर फिर से चला गया
अपनी गुफा के द्वार पर
तभी सुना उसने एक गीत
गाय जो लहरों का समूह
कहता बाज को बहादुर एवं अविश्वासी
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