पाठ बस की यात्रा आज के समाज में भी कैसे सार्थक है
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हरिशंकर परसाई की रचना 'बस की यात्रा' आज के समाज में भी सार्थक है क्योंकि आज भी हम कई बार देखते हैं कि सड़क पर पुराने वाहन धड़ाधड़ चल रहे होते हैं। उनके मालिकों को लोगों की जान की कोई परवाह नहीं होती। ... “ऐसा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।”
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