Hindi, asked by bhaishaurya12, 5 hours ago

पाठ इतने ऊंचे उठो के आधार पर लिखिए कि इस समय समाज में कौन-कौन सी रिवाज ही परंपराएं हैं और उन्हें समाप्त करने के लिए आप क्या कर सकते हैं 70 शिक्षक में लिखें​

Answers

Answered by misstanyasharma
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Explanation:

तने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है। इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥ ... अर्थ: प्रस्तुत पद्य पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हमें नए समाज निर्माण में अपनी नई सोच को जाति, धर्म, रंग-द्वेष आदि जैसे भेदभावों से ऊपर उठकर सभी को समानता की दृष्टि से देखना चाहिये।

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Answered by sharmayachna95
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Answer:

इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है।

देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से

सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से

जाति भेद की, धर्म-वेश की

काले गोरे रंग-द्वेष की

ज्वालाओं से जलते जग में

इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥

प्रसंग: प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ________ से ली गई हैं । इस कविता का शीर्षक ’इतने ऊँचे उठो’ है। इस कविता के कवि ’श्री द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी’ है।

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों में, सभी भेदभावों से ऊपर उठकर समाज में समानता का भाव जगाने की बात कही गई है।

अर्थ: प्रस्तुत पद्य पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हमें नए समाज निर्माण में अपनी नई सोच को जाति, धर्म, रंग-द्वेष आदि जैसे भेदभावों से ऊपर उठकर सभी को समानता की दृष्टि से देखना चाहिये। जिस प्रकार वर्षा सभी के ऊपर समान रूप से होती है उसी प्रकार हमें भी सभी के साथ समान रूप से पेश आना चाहिए। हमें नफरत की आग को समाप्त कर समाज में मलय पर्वत से आने वाली हवा की तरह शीतलता और शांति लाने का प्रयत्न करना चाहिए।

नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो

नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो

नये राग को नूतन स्वर दो

भाषा को नूतन अक्षर दो

युग की नयी मूर्ति-रचना में

इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है॥

अर्थ: इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि नए समाज के निर्माण में हमें आगे बढ़कर अपनी कल्पनाओं को आकार देकर उन्हे वास्तविक जीवन में लाने का प्रयत्न करना चाहिए। जिसप्रकार कोई कलाकार अपनी कूँची से अपने चित्रों में रंग भरता है, और जिसप्रकार संगीतकार अपने नए राग में स्वरों को पिरोता है, उसी प्रकार हमें भी अपने समाज को नया रूप देने के लिए सृजनात्मक बनना होगा। और सृजन को हमें अपने अंदर मौलिक रूप से ग्रहण करना होगा।

लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है

जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है

तोड़ो बन्धन, रुके न चिंतन

गति, जीवन का सत्य चिरन्तन

धारा के शाश्वत प्रवाह में

इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है।

अर्थ: कवि कहते हैं कि हमे अपने अतीत में हुई बुरी घटनाओं को छोड़कर केवल अच्छी बातों को ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि ये अच्छी यादे या घटनाएँ ही हमारे भविष्य निर्माण में हमारे काम आएँगी जबकि बुरी घटनाएँ हमें सदैव पीछे की ओर ही खींचेंगी, इनसे हमारा विकास अवरुद्ध होगा। कवि कहते हैं कि जिसतरह परिवर्तन सदैव होता रहता है उसी प्रकार हमें भी सभी बंधनों को तोड़कर हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए। क्योंकि आगे बढ़ना ही जीवन है।

चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनाना

अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना

सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे

सब हैं प्रतिपल साथ हमारे

दो कुरूप को रूप सलोना

इतने सुन्दर बनो कि जितना आकर्षण है॥

अर्थ: कवि कहते हैं कि यदि हम धरती को स्वर्ग की तरह सुंदर बनाना चाहते हैं तो हमें अपनी कल्पनाओं को मूर्त रूप देते हुए (साकार करते हुए) अच्छाइयों को लेकर आगे बढ़ना चाहियो और हम अपने समाज को सभीबुराइयों से ऊपर उठाकर एक खूबसूरत समाज की रचना कर सकते हैं कवि कहते हैं कि हमें अपनी सोच और भावनाएँ सदैव अच्छी रखनी चाहिए जिससे एक सुंदर समाज की रचना होगी और वह समाज सदैव विकास की ओर बढ़ता रहेगा। जिसप्रकार हम किसी आकर्षण की ओर खिंचे चले जाते है उसी प्रकार अच्छी सोच के साथ हमें खुद को भी आकर्षक बनाना है

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