पंथ की पहचान ke कवि ने पथिक को अपनी किस आन पर डटे रहने के लिए
कहा है ?
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शब्दार्थ-बटोही = राहगीर। बाट = रास्ता । पंथी = पथिक। पंथ = मार्ग। सन्दर्भ-यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘पथ की पहचान’ से उद्धृत है।
प्रसंग – इसमें कवि चाहता है कि हमें कोई भी कार्य सोच-विचारकर करना चाहिए। लक्ष्य चुन लेने के बाद उस काम की कठिनाइयों से नहीं घबराना चाहिए।
व्याख्या – कवि कहता है कि हमारे जीवन-पथ की कहानी पुस्तकों में नहीं लिखी होती है, वह तो हमें स्वयं ही बनानी पड़ती है, दूसरे लोगों के कथन के अनुसार भी हम अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित नहीं कर सकते। इसका निर्धारण हमें स्वयं ही करना पड़ेगा। इस संसार में अनेक लोग पैदा हुए और मर गये। उन सबकी गणना नहीं की जा सकती, परन्तु कुछ ऐसे कर्मवीर भी यहाँ जन्मे हैं जिनके पदचिह्न मौन भाषा में उनके (UPBoardSolutions.com) महान् कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं। उन सभी कर्मठ महापुरुषों ने काम करने से पहले खूब सोच-विचार किया और फिर जी-जान से अपने कार्य में जुटकर सफलता प्राप्त की। अतः हे राहगीर, उनसे प्रेरणा ग्रहण कर अपना मार्ग निश्चित कर ले और तब उस पर चलना शुरू कर।