पाठ का सार - एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!, कृतिका II, हिंदी, कक्षा - 10
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हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। ये बात अलग है कि ऐसे लोगों के योगदान के बारे में हमें कम ही पढ़ने को मिलता है। इस कहानी में लेखक ने ऐसे लोगों के योगदान को बहुत भलीभाँति उभारा है। इस कहानी के मुख्य पात्र वह काम करते हैं जिसका लोग आनंद तो लेते हैं पर ऐसे काम करने वालों को हिकारत की दृष्टि से देखते हैं। लेखक को भलीभाँति पता है कि ऐसे लोगों की कहानी में बहुत कम लोगों की दिलचस्पी होगी। इसलिए लेखक ने इसे एक प्रेमकथा की शक्ल दे दी है ताकि लोगों की रुचि बनी रहे। दुलारी द्वारा नए और महँगे वस्त्र को आंदोलन के लिए समर्पित करना बहुत अहम है क्योंकि अन्य लोग तो अपने फटे पुराने कपड़े ही सौंप रहे थे। दुलारी के उस कृत्य से पता चलता है कि उसके अंदर भी देशप्रेम कूट-कूट कर भरा था। जुलूस में टुन्नू का शामिल होना और उस दिन उसकी खद्दड़ वाली वेशभूषा से पता चलता है कि वह भी स्वाधीनता संग्राम में अपने तरीके से योगदान करना चाहता था। ऐसा अक्सर होता है कि किसी भी बड़ी लड़ाई में लोग सिपाहियों के योगदान को भूल जाते हैं और केवल सेनापति को याद रखते हैं। लेखक ने इस स्थिति की पुनरावृत्ति अपनी कहानी में की है। बेचारा टुन्नू गुमनामी की मौत मारा जाता है जिसकी मौत पर आँसू बहाने के लिए केवल दुलारी बची हुई है।