पाठ का सार इस प्रकार है- सिंहासन पर श्रीराम आरूढ हैं। तापस वेश में कुश और लव आते हैं। श्रीराम स्नेहवश उन बच्चों को अपने पास बैठने के लिए आमन्त्रित करते हैं। दोनों तपस्वी शिष्टाचारपूर्वक सिंहासन पर बैठने से मना कर देते हैं। भगवान दोनों बालकों की आकृति और उनके शिष्टाचारपूर्ण व्यवहार से अत्यधिक प्रभावित हो जाते हैं। वे उनके विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। दोनों बालकों का नाम तथा उनके वंश के विषय में वृत्त प्राप्त करने के पश्चात् श्रीराम उनके गुरु के विषय में प्रश्न करते हैं। तब उन्होंने बताया कि उनके गुरु भगवान् वाल्मीकि हैं। इसके पश्चात् श्रीराम ने उन बालकों की माता का नाम जानने की इच्छा प्रकट की। बालकों ने बताया कि उनकी माता को 'देवी' के नाम से जाना जाता है। तत्पश्चात् श्रीराम ने उनके पिता के विषय में पूछा। दोनों बालकों ने बताया कि सभी उनके पिता को 'क्रूर' नाम से पुकारते हैं। जब वे कोई चंचलता करते हैं तो उनकी माता क्रोधपूर्वक चिल्लाती हैं-अरे, 'कूर की सन्तान! धृष्टता मत करो।' यह सब सुनकर श्रीराम को अत्यधिक दुःख होता है। वे उन बालकों से रामायण गाने के लिए आग्रह करते हैं, परंतु समयाभाव से ऐसा न कर सके। translate in sanskriti
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