पाठ म.प्र की संगीत विरासत के आधार पर
Answers
Answer:
बोध प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए
उत्तर
ध्रुपद = गायन की एक विशेष शैली; विरासत = उत्तराधिकार में प्राप्त; प्रणेता = रचनाकार; गुरुभाई = एक ही गुरु के शिष्य आपस में गुरुभाई कहलाते हैं; जीवन्त सजीव, जीवित।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए
(क) मध्य प्रदेश में कौन-कौन से प्रमुख संगीतकारों ने संगीत की साधना की?
उत्तर
मध्य प्रदेश में सोलहवीं सदी के महान् गायक तानसेन, ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर, सन्तूर वादक उस्ताद अलाउद्दीन खाँ, कुमार गन्धर्व (वास्तविक नाम सिद्राम कोयकली) एवं स्वर कोकिला लता मंगेशकर आदि प्रमुख संगीतकारों ने संगीत की साधना की।
मध्य प्रदेश की संगीत विरासत परीक्षोपयोगी गद्यांशों की व्याख्या:-
(1) आराधना साधना और प्रार्थना ने संगीत को संजीवनी बनाया। अतीत से वर्तमान तक मध्य प्रदेश अपने इतिहास में संगीत के कीर्तिमान स्थापित करता चला आ रहा है। संगीत की शक्ति ‘से दीप जलाना और वर्षा कराना संगीत की साधना की विजय है।
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक भाषा-भारती के मध्य प्रदेश की संगीत विरासत’ नामक पाठ से अवतरित है।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में लेखकों ने संगीत के महत्त्व को. बताया है।
व्याख्या-संगीत जीवन देने वाली औषधि के समान है। इसका प्रयोग भक्तों ने आराधना (स्तुति) करने में, साधना करने में तथा अपने देव की प्रार्थना करने में लगातार किया है, जिससे संगीत का विकास और विस्तार हुआ। मध्य प्रदेश भारतवर्ष का एक महत्त्वपूर्ण प्रदेश है। यहाँ पर बीते हुए युग से लेकर मौजूदा समय तक संगीत की साधना की गई। मध्य प्रदेश के इतिहास में संगीत की साधना एक महत्त्वपूर्ण घटना है और इसे संगीत की प्रशंसा का सर्वोच्च स्थान प्राप्त करवाया। आज भी इस क्षेत्र में संगीत को उन्नत बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। संगीत की साधना सम्बन्धी पराकाष्ठा, दीप जला देने और बादलों के घुमड़ आने तथा वर्षा कराने में निहित है। इस सब से लगता है कि संगीत की साधना से सर्वत्र विजय प्राप्त की जा सकती है।
(2) ऋषि, मुनियों और साधकों की हजारों वर्षों की तपस्या एवं परिश्रम का प्रतिफल है-संगीत। कहा जाता है कि जिस समाज में कला का स्थान नहीं होता, वह समाज भी प्राणहीन हो जाता है।
प्रसंग-संगीत आदि ललित कलाओं को महत्त्व न देने वाला समाज मरा हुआ होता है।
व्याख्या-संगीत के विकास और उन्नति के लिए हमारे ऋषियों, मुनियों तथा संगीत कला की साधना करने वाले संगीतकारों ने तपस्या की। वे सभी एकचित्त होकर संगीत की साधना में लगे रहे। आज संगीत कला जिस मुकाम को प्राप्त हो गयी है, वह मुकाम उन सभी साधकों की तपस्या और उनकी मेहनत का नतीजा है, परिणाम है। यह कहावत सत्य है कि वह समाज मरा हुआ (मृत) होता है जिसमें संगीत आदि अनेक कलाओं को महत्त्व नहीं दिया जाता। अतः समाज की जीवन्तता के लिए आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है कि समाज के लोगों को कला के महत्त्व को समझना चाहिए और इसके विकास और उन्नति के लिए निरन्तर सहयोग देकर साधकों को उत्साहित करना चाहिए।
(3) संगीत की महिमा अनंत है। संगीत की शास्त्रीयता जहाँ साधना को महत्त्व देती है, वहीं उसकी मधुरता, आत्मिक शान्ति और जीवन जीने की उमंग उत्पन्न करती है। संगीत में पगे गीतों को सुनकर जहाँ आदमी थिरक उठता है, वहीं करुणा में डूबकर आँसू बहाने पर विवश हो जाता है।
संगीत जब – जन-साधारण को प्रभावित करने लगता है, तब उसका सामाजिक महत्त्व बढ़ जाता है।
.
.
.
.
.
.
.
.
{कृपया जवाब गलत होने पर रिपोर्ट न करें, हमने आपको सही उत्तर देने की पूरी कोशिश की है}