Hindi, asked by tekammanoj2001, 1 month ago

पाठ 'पद और दोहे' में लोक लाज को छोड़कर सन्तों के पास बैठने के विषय में कहा गया है उन पंक्तियों के
खोजकर लिखिए।
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Answers

Answered by janaksinghneti1997
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Explanation:

नोकज्ज्ज्ज्ज्जीऊ जजीऊऊऊ जजकूऊ ज्ज्ज्ककक भजज्ज

Answered by shishir303
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पाठ ‘पद और दोहे’ में लोक-लाज को छोड़कर सन्तों के पास बैठने के विषय में पंक्तियां इस प्रकार हैं...

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई॥

जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।

तात मात भ्रात बंधु, आपनों न कोई॥

छाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करै कोई।

सन्तन डिंग बैठि-बैंठि लोक-लाज खोई॥

चूनरी के किये टूक, ओढ़ लीन्हीं लोई।

मोती मूंगे उतारि, वन-माला पोई।

व्याख्या :  मीराबाई कहती हैं मेरे प्रभु तो गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले हैं और गायों को पालने वाले प्रभु श्री कृष्ण हैं। उनके अलावा मेरा कोई प्रभु नहीं। वे जो अपने सिर पर मोर का मुकुट धारण करते हैं, वही मेरे पति हैं। मेरे माता पिता भाई बहन जैसे सगे संबंधी कोई नहीं है। मैंने तो कुल मर्यादा सब छोड़ दिया है तो मेरा कोई क्या कर लेगा।

मैंने साधु संतों की संगति में बैठना शुरु कर दिया है और मैंने लोक लाज त्याग दी है। किसी प्रसंभ्रांत परिवार की बहू जिस मर्यादा रूपी चुनरी को ओढ़ कर चलती है, मैंने उस चुनरी के दो टुकड़े कर दिए हैं, अर्थात फाड़ दिया है, और लोई पहन ली है। मोती-मूंगा जैसे आभूषण धारण करना छोड़कर वनमाला पहन ली है।

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