पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ
"शालिनी ग्रीष्मावकाशे पितृगृहम् आगच्छति। सर्वे प्रसन्नमनसा तस्याः स्वागतं कुर्वन्ति परं तस्याः भ्रातृजाया उदासीना इव दृश्यते।"
शालिनी-भ्रातृजाये! चिन्तिता इव प्रतीयसे, सर्वं कुशलं खलु?
माला-आम् शालिनि। कुशलिनी अहम्। त्वदर्थम् किं आनयानि, शीतलपेयं चायं वा?
शालिनी-अधुना तु किमपि न वाञ्छामि। रात्रौ सर्वैः सह भोजनमेव करिष्यामि।
शब्दार्थ : ग्रीष्मावकाशे-ग्रीष्मावकाश में। पितृगृहम्-पिता के घर (मायके) में। प्रसन्नमनसा-खुशी मन से। तस्याः-उसका (शालिनी का)। भ्रातृजाया-भाभी। उदासीना-उदास। दृश्यते-दिखाई देती है। भ्रातृजाये!-हे भाभी। चिन्तिता इव-चिन्तायुक्त सी। प्रतीयसे-दिखाई देती हो। त्वदर्थम्-तुम्हारे लिए। आनयानि-लाऊँ। किमपि-कुछ भी। रात्रौ-रात में। सर्वैःसह-सबके साथ। भोजनम् एव-खाना ही। करिष्यामि-खाऊँगी।
सरलार्थ : "शालिनी ग्रीष्मावकाश (गर्मी की छुट्टी) में पिता के घर (मायके) आती है। सभी प्रसन्न मन से उसका स्वागत करते हैं परन्तु उसकी भाभी उदासीन (उदास) सी दिखाई पड़ती है।"
शालिनी-भाभी! चिन्तित (चिन्ता मुक्त) सी दिखाई पड़ती हो, क्या सब कुशल है?
माला-हाँ शालिनी! मैं कुशल हूँ। तुम्हारे लिए क्या लाऊँ, ठंडा अथवा चाय?
शालिनी-अभी (इस समय) तो कुछ भी नहीं चाहती हूँ। रात में सभी के साथ खाना खाऊँगी।
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sorry I can't understand the question
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sorry. but it is not a question
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