‘पृथ्वी को रख दिया उठाकर, तूने नभ के आँगन में कहने का क्या तात्पर्य है?
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बाजार ने, विज्ञापन ने हिन्दी को एक क्रान्तिकारी रूप दिया, जिसमें रवानगी है, स्वाद है, रोमांच है, आज की सबसे बड़ी चाहत का अकूत संसार है। इस तरह हिन्दी भविष्य की भाषा, समय का तकाजा और रोजगार की जरूरत बनती जा रही है।
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ पत्रकारिता है। सूचना-क्रान्ति ने विश्व को ग्राम बना दिया है। मीडिया की जागरूकता ने समाज में एक क्रान्ति ला दी है और इसे क्रान्ति की भाषा हिन्दी है। इतने सारे समाचार चैनल हैं और सभी चैनलों पर हिन्दी अपने हर रूप में नए कलेवर, तेवर में निखर कर, सँवर कर, लहरकर, ‘बोले तो बिंदास बनकर छाई रहती है। तुलनात्मक अर्थों में आज अंग्रेजी-पत्रकारिता से हिन्दी-पत्रकारिता का मूल्य, बाजार, उत्पादने, उपभोग और वितरण बहुत बड़ा है।
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