पृथ्वी के उच्छवास के समान उठते हुए धुंधलेपन में वे कच्चे पर आकंठ-मग्न हो गए थे - केवल फूस के
मटमैले और खपरैल के कत्थई और काले छप्पर , वर्षा में बढ़ी गंगा के मिट्टी जैसे जल में पुरानी नावों के
समान जान पड़ते थे। कछार की बालू में दूर तक फैले तरबूज़ और खरबूजे के खेत अपनी सिर की और
फूस के मुठ्ठियों, टट्टियों और रखवाली के लिए बनी पर्णकुटियों के कारण जल में बसे किसी आदिम द्वीप
का स्मरण दिलाते थे। उनमें एक-दो दीए जल चुके थे , तब मैंने दूर पर एक छोटा-सा काला धब्बा आगे
बढ़ता देखा। वह घीसा ही होगा, यह मैंने दूर से ही जान लिया। आज गुरु साहब को उसे विदा देना है, यह
उसका नन्हा हृदय अपनी पूरी संवेदना-शक्ति से जान रहा था इसमें संदेह नहीं था। परन्तु उस उपेक्षित
बालक के मन में मेरे लिए कितनी सरल ममता और मेरे बिछोह की कितनी गहरी व्यथा हो सकती है, यह
जानना मेरे लिए शेष था।
प्रश्र4. व्यंग्य लेखन का क्या उद्देश्य है?
प्रश्न, 'आखिरी चट्टान तक रिपोर्ताज में परिवेश का जीवन्त निरुपण किस प्रकार किया गया है सिद्ध कीजिए।
प्रश्र 6. निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
Answers
Explanation:
cotigxitxixttsutus9rsru96r99uraur0sut0sur9sy9sry9fs9ura9yrs9yraurs
पथृ्वी के उच्छवास के समान उठते
हए धुंधलेपन में वे कच्चे पर -मग्न हो गए थे- के वल फूस के
मटमैलेऔर खपरैल के कत्थई औ काले छप् , वषार् में बढ़ी गंगा के िमट्टी जैसे जल में पुर ानी नाव
समान जान पड़ते थे। कछार क बाल में दू
ू में दू तक फैले तरबू तक फैले तरबज़ औ खरबूजे के खेत अपनी िस क औ
फूस के मुिठ मु ्ठ, ट�ट्टयों और रखवाली के िलए बनी पणर्कुिटयों के का ण जल में बसे िकसी आिद
का स्मरण िदलाते थे। उनमें -दो दीए जल चुक े थे, तब मंने दू ै ंने दू प एक छोट-सा काला धब्बा आगे
बढ़ता देखा। वह घीसा ही होगा, यह मंने दू ै ंने दूर से ही जान िलया। आज ु
ग साहब को उसे िवदा देना ह, यह
उसका नन्हा दय अपनी पूरी स
ंवेदन-शि� सेजान रहा था , इसमें स
ंदेह नहीं था। परन्तु उस उपेि
बालक के मन में मेरे िलए िकतनी सरल ममता औ मेरे िबछोह क िकतनी गहरी व्यथा हो सकती , यह
जानना मरेेिलए शेष था।