पृथ्वी दिवस के ऊपर कविता
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विश्व पृथ्वी दिवस- सुमित्रानंदन पंत की कविता 'यह धरती कितना देती है'
- अर्द्धशती हहराती निकल गयी है तबसे कितने ही मधु पतझर बीत गये अनजाने ...
- देखा-आँगन के कोने में कई नवागत छोटे-छोटे छाता ताने खड़े हुए हैं ...
- तब से उनको रहा देखता धीरे-धीरे ...
- ओह, समय पर उनमें कितनी फ़लियाँ फूटी ...
- यह धरती कितना देती है!
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ये बाजू में लिखा है उसे आप कविता बना सकते है
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