पृथ्वी दिवस पर कविता
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दे दो उसे जीवनदान
घुट रहा है दम,
निकल रहे हैं प्राण।
कोई सुन ले तो,
दे दो उसे जीवनदान।
सूख रहे हैं हलक,
मरुस्थल है दूर तलक।
सांस-सांस में कोहरा है,
इस दर्द से कोई रो रहा है।
सुन ले कोई चीत्कार,
दे दो उसे भी थोड़ा प्यार।
प्रकृति की हो रही विकृति,
अवैध खनन के नाम क्षति।
पहाड़ों को जा रहा काटा,
बिगड़ रहा है संतुलन,
हो रहा है बहुत ही घाटा।
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