पा
द्यांश क्र.2: (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 7) IIIL
II
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात ।
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात ।।
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय ।
यह गुन भाषा और महँ, कबहूँ नाहीं होय ।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार ।
सब देसन से लै करहू, भाषा माँहि प्रचार ।।
भारत में सब भिन्न अति, ताही सों उत्पात ।
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात ।। write the meaning of the para
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