पादयोः न पदत्राणे शरिरे वसनानि नो।
निर्धनं जीवनं कष्टं सुखं दूरे हि तिष्ठति ॥
गृहं जीर्णं न वर्षासु वृष्टिं वारयितुं क्षमम् ।
तथापि कर्मवीरत्वं कृषिकाणां न नश्यति ॥
१. कृषकाणां पादयोः के न स्त:?
२. तेषां शरिरे कानि न सन्ति?
३. कृषकाणां जीवनं कीदृशं भवति?
४. कृषकाणां गृहं किम् वारयितुं न क्षमम् ?
५. केषां कर्मवीरत्वं न नश्यति?
Answers
१. कृषकाणां पादयोः पदत्राणे न स्त: ।
२. तेषां शरिरे वसनानि न सन्ति ।
३. कृषकाणां जीवनं निर्धनं जीवनं कष्टमयं च भवति ।
४. कृषकाणां गृहं वर्षासु वृष्टिं वारयितुं न क्षमम् ।
५. कृषिकाणां कर्मवीरत्वं न नश्यति ।
प्रस्तुत पंक्तियाँ कृषिकाः कर्मवीराः पाठ से लिया गया है । इसमे हमारे कर्मठ किसानों की परिस्थितियों का वर्णन किया गया है कि उन्हें उनके जीवन मे कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं । किसानों के पैरों में जूते नहीं हैं और ना ही शरीर पर कोई कपड़ें हैं। वे बहुत निर्धन हैं । उनका जीवन जीवन है और सुख तो उनसे हमेशा दूर ही रहता है। किसान का घर पुराना और टूटा-फूटा है। उस घर मे वर्षा का पानी अंदर आ जाता हैं । इन सब के बाद भी किसान हर हालात में अपने काम में लगे रहते हैं।
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