पोंधो के लिए वायोत्सर्जन क्यों आवश्यक है।
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बाष्पोत्सर्जन के प्रकार: वाष्पोत्सर्जन मुख्यतः 4 प्रकार का होता है। ये हैं-
पत्रीय वाष्पोत्सर्जन (Leaftranspiration):
पत्रीय वाष्पोत्सर्जन लगभग 80-90% पत्तियों पर उपस्थित रंध्रों के द्वारा होता है।
उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन (Cuticular transpiration):
यह पौधों की त्वचा (Bark) या छाल द्वारा होता है। इससे कुल जल की लगभग 3-8% हानि होती है।
वातरंधीय वाष्पोत्सर्जन (Tenticellular transpiration):
काष्ठीय तने तथा कुछ फलों में वातरंध्र (Tentieels) पाये जाते हैं। इन वातरंध्रों के द्वारा वाष्पोत्सर्जन होता है परन्तु जल की हानि नगण्य होती है।
बिन्दुस्राव (Guttation): बिन्दुस्राव सामान्यतः
रात्रि के समय होता है। इसमें पतियों के किनारों से जल बूंद-बूंद के रूप में निकलता है। बिन्दु-स्राव के द्वारा निकलने वाले जल में कुछ कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ भी मौजूद रहते हैं।
वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक:
प्रकाश की तीव्रता: प्रकाश की तीव्रता बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ती है।
तापक्रम: तापक्रम के बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ती है।
आर्द्रता: आर्द्रता के बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन की दर घटती है।
वायु: वायु की गति तेज होने पर वाष्पोत्सर्जन तीव्र गति से होता है।
वाष्पोत्सर्जन का महत्व: 》》》
यह खनिज लवणों को जड़ से पतियों तक पहुँचाने में सहायता करता है।
यह पौधे का तापमान संतुलित रखने में सहायता करता है।
यह जल अवशोषण एवं रसारोहण में मदद करता है।
यह वायुमण्डल को नम (Moist) बनाकर जल चक्र (Hydrologic cycle) को पूरा करने में मदद करता है।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए यह जल का संभरण करता है।
पौधों में वाष्पोत्सर्जन की दर को गैनोंग पोटोमीटर (Ganong potometer) के द्वारा मापा जाता है।
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