पौधों के श्वसन अंग का नाम लिखिए और पौधों का वह अंग जो गैस के आदान-प्रदान में सहायक है उसका चित्र बनाइए
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सजीव कोशिकाओं में भोजन के आक्सीकरण के फलस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होने की क्रिया को कोशिकीय श्वसन कहते हैं।[1] यह एक केटाबोलिक क्रिया है[2] जो आक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति दोनों ही अवस्थाओं में सम्पन्न हो सकती है। इस क्रिया के दौरान मुक्त होने वाली ऊर्जा को एटीपी नामक जैव अणु में संग्रहित करके रख लिया जाता है[3] जिसका उपयोग सजीव अपनी विभिन्न जैविक क्रियाओं में करते हैं। यह जैव-रासायनिक क्रिया पौधों एवं जन्तुओं दोनों की ही कोशिकाओं में दिन-रात हर समय होती रहती है। कोशिकाएँ भोज्य पदार्थ के रूप में ग्लूकोज, अमीनो अम्ल तथा वसीय अम्ल का प्रयोग करती हैं जिनको आक्सीकृत करने के लिए आक्सीजन का परमाणु इलेक्ट्रान ग्रहण करने का कार्य करता है।
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पेड़-पौधे भी श्वसन करते हैं, और वो भी चौबीसों घंटे इस बात पर ज़ोर इसलिए देना पड़ा कि अभी कल ही किसी ने जिक्र किया, ‘’एक आम धारणा है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के समय श्वसन रूक जाता है और रात को जब प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बंद हो जाती है तो श्वसन शुरू हो जाता है।‘’
पेड़-पौधे भी श्वसन करते हैं, और वो भी चौबीसों घंटे इस बात पर ज़ोर इसलिए देना पड़ा कि अभी कल ही किसी ने जिक्र किया, ‘’एक आम धारणा है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के समय श्वसन रूक जाता है और रात को जब प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बंद हो जाती है तो श्वसन शुरू हो जाता है।‘’दरअसल श्वसन की आवश्यकता जुड़ी हुई है ऊर्जा के उत्पादन और उसकी खपत से। यह ऊर्जा मिलती है कार्बोहाइड्रेट पदार्थों के ऑक्सीकरण से। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पौधों में कार्बोहाइड्रेट पदार्थ बनते हैं; इनका ऑक्सीकरण होता है और ऊर्जा पैदा होती है। जीवन की तमाम गतिविधियों के लिए ऊर्जा की ज़रूरत तो सभी जीवधारियों को हमेशा है; हां, इसका उत्पादन ज़रूर क्रियाशीलता के हिसाब से कम-ज्यादा हो सकता है।
पेड़-पौधे भी श्वसन करते हैं, और वो भी चौबीसों घंटे इस बात पर ज़ोर इसलिए देना पड़ा कि अभी कल ही किसी ने जिक्र किया, ‘’एक आम धारणा है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के समय श्वसन रूक जाता है और रात को जब प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बंद हो जाती है तो श्वसन शुरू हो जाता है।‘’दरअसल श्वसन की आवश्यकता जुड़ी हुई है ऊर्जा के उत्पादन और उसकी खपत से। यह ऊर्जा मिलती है कार्बोहाइड्रेट पदार्थों के ऑक्सीकरण से। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पौधों में कार्बोहाइड्रेट पदार्थ बनते हैं; इनका ऑक्सीकरण होता है और ऊर्जा पैदा होती है। जीवन की तमाम गतिविधियों के लिए ऊर्जा की ज़रूरत तो सभी जीवधारियों को हमेशा है; हां, इसका उत्पादन ज़रूर क्रियाशीलता के हिसाब से कम-ज्यादा हो सकता है।वैसे पेड़-पौधों की ऑक्सीजन की खपत जंतुओं के मुकाबले कम है। लेकिन उनमें श्वसन के लिए ज़रूरी मूलभूत शर्तें वैसी ही हैं जो अन्य सब जीव-धारियों पर लागू होती हैं – कोशिका में प्रवेश करने से पहले ऑक्सीजन घुली हुई होना चाहिए, विसरण तेज़ी से हो इसके लिए कोशिका और श्वसन सतह के बीच दूरी अत्यंत कत होनी चाहिए अथवा . . . आदि-आदि।
पेड़-पौधे भी श्वसन करते हैं, और वो भी चौबीसों घंटे इस बात पर ज़ोर इसलिए देना पड़ा कि अभी कल ही किसी ने जिक्र किया, ‘’एक आम धारणा है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के समय श्वसन रूक जाता है और रात को जब प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बंद हो जाती है तो श्वसन शुरू हो जाता है।‘’दरअसल श्वसन की आवश्यकता जुड़ी हुई है ऊर्जा के उत्पादन और उसकी खपत से। यह ऊर्जा मिलती है कार्बोहाइड्रेट पदार्थों के ऑक्सीकरण से। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पौधों में कार्बोहाइड्रेट पदार्थ बनते हैं; इनका ऑक्सीकरण होता है और ऊर्जा पैदा होती है। जीवन की तमाम गतिविधियों के लिए ऊर्जा की ज़रूरत तो सभी जीवधारियों को हमेशा है; हां, इसका उत्पादन ज़रूर क्रियाशीलता के हिसाब से कम-ज्यादा हो सकता है।वैसे पेड़-पौधों की ऑक्सीजन की खपत जंतुओं के मुकाबले कम है। लेकिन उनमें श्वसन के लिए ज़रूरी मूलभूत शर्तें वैसी ही हैं जो अन्य सब जीव-धारियों पर लागू होती हैं – कोशिका में प्रवेश करने से पहले ऑक्सीजन घुली हुई होना चाहिए, विसरण तेज़ी से हो इसके लिए कोशिका और श्वसन सतह के बीच दूरी अत्यंत कत होनी चाहिए अथवा . . . आदि-आदि।अगर आकार की दृष्टि से पेड़-पौधों को देखें तो वे एक कोशीय से लेकर बहुकोशीय रूप में मौजूद हैं। जलीय पौधों को तो कोई समस्या नहीं है; उनके आसपास के वातावरण में घुली ऑक्सीजन सीधे ही