पेड़ के पुकार कविता का आशय लिखिए
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पेड़ की पुकार
मै एक पेड़ हूँ
मेरे भी प्राण हैं
मै स्वास भी लेता हूँ
खुद से पानी पी लेता हूँ
मै भी इंसान सा जन्मा हूँ
मुझे भी एक दिन मरना है
मेरी भी कुछ जातियां व नाम हैं।
मै भी औरों जैसा,कभी बच्चा था
उम्र के साथ साथ बड़ा हुआ
फ़िर तेरे जैसा युवा हुआ
सुन्दर,आकर्षक भी दिखता
बारिश,धूप, सर्द सब सहता
तूफ़ानो,आँधियों से भिड़ता
खड़ा,जीवन भर ही रहता।
सबकी सेवा को लगा रहता
कभी न रोता, कभी न सोता
किसी से कुछ भी नहीं मांगता
न ही कुछ छीनता, न ही झगड़ता
फल,बनस्पति,जड़ीबूटी सब को देता
शीतल छाँव सुगन्ध, नित बाँटता
पशु पक्षी को घर व खाना देता।
तुझसे इन्सान,यही इक विनती है
मुझे अभी ज़िंदा रहने दो
क्यों तुले हो मिटाने को मुझको ?
मुझसे आख़िर क्या ख़ता हुई ?
मेरी बाहों,पैरों को मत काटो
मेरे नन्हे बच्चे कोपल,अंकुर को,
औजारों से मत छाँटो।
मेरे पत्तों के सुन्दर वस्त्रों को मत नोचो
ऐ मानव,मुझे नग्नता कभी न भाती
मै तो जन्मा ही हूँ तेरे सुख ख़ातिर
अब भी ना माना तो तू पछताएगा
मेरे संग तेरा जीवन भी दूभर हो जाएगा
इस जग में सूखा,अकाल छा जाएगा
फ़िर तू भी ज़िन्दा ना रह पाएगा।
रमेश शुक्ल ~