पेड़ पछि पानी और पहाड़ों से
क्या सीख मिलती है
है।
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Explanation:
मनरेगा को लेकर राजस्थान सरकार का कहना है कि उसने कोरोना के समय 54 लाख लोगों को रोजगार दिया. उत्तर प्रेदश का आंकड़ा 70 लाख जबकि गुजरात का कहना है कि उसने 6.7 लाख लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार दिया है. कुछ राज्य दैनिक मनरेगा मजदूरी बढ़ाने का ढोल पीट रहे हैं जैसे हरियाणा का दावा 309 रुपए प्रति दिन मजदूरी. केंद्र सरकार मनरेगा के बजट को डबल करने की बात कह रही है.
मतलब मनरेगा योजना आंकड़ों की बाजीगरी में उलझ गई है. क्या मनरेगा का मकसद संख्या बल बढ़ाना था? क्या मनरेगा केवल पैसे बांटने का जरिया थी? आखिर मनरेगा योजना का असल दर्शन क्या था? इसमें किस तरह की संभावनाएं हैं? क्या हमने उसकी 10 फीसदी सम्भवनाओं को भी बनाया?
सुबह के 11 बजे हैं. सूरज तपने लगा है. मिट्टी को छूने पर ऐसा लग रहा है की जैसे किसी ने जलते हुए अंगारों को हाथ मे उठा लिया हो. मोबाइल फ़ोन 46 डिग्री तापमान दिखा रहा है. हम जोधपुर ज़िलें में, लूनी तहसील के बाकराशनी गांव मेंहैं. ये गांव तनावड़ा पंचायत के अंतर्गत आता है.
यहां मनरेगा का कार्य चल रहा है. इस तपती रेत में कुछ महिलाएं मिट्टी खोद रही हैं. इन्ही में एक अधेड़ उम्र की औरत मिट्टी का गड्ढा खोदते हुए हमें बार-बार देख रही है. वो कुदाल को इतनी तेजी से जमीन पर पटकती है, जैसे धरती को दो टुकड़ों में चीर देगी. महिला का नाम मनबरी है. मनबरी की उम्र करीब 50 वर्ष है.