पेड़ सहकर धूप खुद देते सभी को हांह अपनी मदद करने को बढ़ाते. डालियों-सी बाँह अपनी। खींचते रहते निरंतर, ये हवा गंदी हमारी है हमें मिलती इन्हीं से. प्राण-वायु विशुद्ध सारी। सींचते धरती हमारी. बादलों को भी बुलाते, जल बरसता खेत उपवन वन सभी हैं लहलहाते। जाएँ उनको काटते ही, तो मिलेगी छाँह कैसे? मदद करने को बढ़ेगी. डालियों-सी बाँह कैसे? और लेने साँस भी फिर, प्राण वायु कहाँ मिलेगी? प्राण-वायु नहीं मिली, तो जिंदगी कैसे चलेगी?
जिंदगी कैसे चलेगी कविता में पंड़ों के महत्व
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