पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन। अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछत कौन
» अर्थ : वर्षा ऋतु को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया है। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता। अभिप्राय यह है कि कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रह जाना पड़ता है, उनका कोई आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है।
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वर्षा ऋतु को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया है। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता। अभिप्राय यह है कि कुछ अवसर ऐसे आते हैं planation:
Good afternoon dear friend
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन। अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछत कौन
» अर्थ : वर्षा ऋतु को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया है। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता। अभिप्राय यह है कि कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रह जाना पड़ता है, उनका कोई आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है।
Answer: अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, वर्षा ऋतु में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी ज्यादा हो जाती है कि, कोयल की मीठी आवाज उनके शोर में दब जाती है. इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है और चुप हो जाती है. अर्थात जब धूर्त और मूर्खों का बोलबाला हो जाए अतः जब मुर्ख व्यक्ति ज्यादा बोलने लगे तब समझदार व्यक्ति की बात पर कोई ध्यान नहीं देता है, और उसे सब झूठा ही समझते है इसलिए ऐसे समय में समझदार व्यक्ति के चुप रहने में ही उसकी भलाई है।
निष्कर्ष
जब मुर्ख व्यक्ति चिल्लाकर बोले और आपकी आवाज़ दबाए तब समझदार को चुप हो जाना चाहिए।