Hindi, asked by preetyrnc1, 21 days ago

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। बसतु अमोलक दी मेरे सतगुरु, करि किरपा अपनायो। जनम-जनम की पूँजी पायी, जग में सबै खोवायो। खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढ़त सवायो। सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तरि जायो। - मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई। छाँड़ दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई। संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोई। अँसुवन जल सीचि-सोंचि, प्रेम बेलि बोई। अब तो बेलि फैल गई, आनंद फल होई। दधि की मथनियाँ, बड़े प्रेम से बिलोई। माखन जब काढ़ि लियो, छाँड़ि दई छोई। भगत देख राजी भई, जगत देखि रोई। दासि मीरा लाल गिरिधर, तारो अब मोही। भजु मन चरण-कँवल अविनासी। जताई दीसे धरण-गगन बिच, तेताई सब उठि जासी। कहा भयो तीरथ व्रत कीन्हें, कहा लिए करवत कासी। इस देही का गरब न करना, माटी में मिल जासी।​

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Answered by divakarsharmaswm123
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Answer:

what we have to do of thing

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