प्यारे बच्चो! कोविड-19 के लॉकडाउन या तालाबंदी में घर के अंदर बंद होकर कैसा लगता है, यह तो आप जान
ही गए होंगे। तो सोचिए पिंजरे में कैद पक्षी को कैसा लगता होगा? आइए इसी बारे में जानते हुए कविता "हम
पंछी
उन्मुक्त गगन के' का दूसरा भाग पढ़ते हैं। यह कविता शिवमंगल सिंह "सुमन" द्वारा रचित है।
स्वर्ण श्रृंखला के बंधन में
ऐसे थे अरमान की उड़ते
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
नीले नभ की सीमा पाने.
बस सपनों में देख रहे हैं।
लाल किरण-सी चोंच खोल
तरू की फुनगी पर के झूले।
चुगते तारक अनार के दाने।
भावार्थ: कवि कहते है कि पक्षी सोने की जंजीरों के बंधन में पड़ कर अपनी चाल और उड़ने का ढंग सब भूल जाते
हैं फिर पिंजरे में पड़े-पड़े पेड़ों की ऊंची शाखाओं पर झूला झूलने का बस सपना ही देखते रहते हैं। जबकि पक्षियों
की इच्छा या अरमान तो खुले आकाश में उड़ने के हैं। वे उड़ते हुए आसमान की सीमा को छूना चाहते हैं अर्थात्
खुले आसमान में दूर तक उड़ना चाहते हैं और अनार के दानों रूपी आकाश के तारों को चुगना चाहते हैं।
आइए जानें - हमने क्या सीखासीखा
प्रश्न1) पक्षी सोने की जंजीरों में बंध कर क्या भूल जाते हैं?
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पक्षी सोने की जंजीरों के बंधन में पड़ कर अपनी चाल और उड़ने का ढंग सब भूल जाते हैं फिर पिंजरे में पड़े-पड़े पेड़ों की ऊंची शाखाओं पर झूला झूलने का बस सपना ही देखते रहते हैं।
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