Hindi, asked by sharmaruma496parqi8, 1 year ago

पेयजल का संकट अनुच्छेद लेखन

Answers

Answered by pragatiprasun14
29
आज पूरे विश्व में पेयजल की कमी का संकट मँडरा रहा है। कहीं यह गिरते भू-जल स्तर के रूप में है तो कहीं नदियों के प्रदूषित पानी के रूप में और कहीं तो सूखते, सिमटते तालाब और झील के रूप में। इसका कारण है, इन स्रोतों से पानी का भारी दोहन किया जाना। पानी के संरक्षित रखने के दर्शन को तो त्याग ही दिया गया है। पूरे विश्व के यूरोप के प्रभाव में आने के बाद से एक ही दर्शन सामने आया कि प्रकृति में जो भी चीजें उपलब्ध हैं उनका सिर्फ दोहन करो। इस दर्शन में संयम का कोई स्थान नहीं है।

आज समूचे यूरोप के 60 प्रतिशत औद्योगिक और शहरी केन्द्र भू-जल के गंभीर संकट की सीमा तक पहुँच गए हैं। पेयजल की गंभीर स्थिति का सामना नेपाल,फिलीपींस, थाइलैण्ड,आस्ट्रेलिया, फिजी और सामोआ जैसे देश भी कर रहे हैं। 

पेयजल का प्रत्यक्ष संकट अधिकतर तीसरी दुनिया के देशों में है, क्योंकि भारी कीमत देकर बाहर से जल मँगाने की इनकी आर्थिक स्थिति नहीं है। इन देशों में जहाँ एक तो नगदी फसलों के चक्र में फँसाकर इन देशों के भू-जल का दोहन हुआ, दूसरे विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा भी भू-जल का जमकर दोहन किया गया और इनसे नदियाँ भी प्रदूषित हुईं। पिछली सदी में अफ्रीका को विश्व का फलोद्यान कहा जाता था। परन्तु आज 19 अफ्रीकी देश पेयजल से वंचित हैं।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अन्तर्गत एक चिंताजनक आँकलन यह भी है कि एक टन मल बहाने के लिए 2000 टन शुद्ध जल बरबाद हो जाता है। शौच के लिए पेयजल की बर्बादी को देखते हुए जाने माने लेखक जोसेफ जैनक्सि समाज को दो रूप में देखते हैं एक तो वह समाज जो अपना मल पीने के पानी से बहाते हैं और दूसरा वह समाज जो मल मिला हुआ पानी पीते हैं।

मनुष्य बिना जल के तीन दिन भी जिन्दा नहीं रह सकता। पृथ्वी के कई भू-भाग पेय जल के संकट से गुजर रहे हैं। औद्योगीकरण के चलते दुनिया का आधा पेय जल पहले ही पीने के अयोग्य घोषित हो चुका है। भूमण्डल की गर्मी बढ़ने के साथ-साथ पृथ्वी का जल तल 3 मीटर प्रतिवर्ष की दर से गिर रहा है और इस समय प्रतिवर्ष 160 अरब क्यूबिक मीटर की कमी दर्ज की गई है। बदलता पर्यावरण कई स्थानों को सूखे में तब्दील कर चुका है।

भारत में भी पेयजल का संकट कई तरह से उत्पन्न हो चुका है। दिल्ली में पानी की किल्लत के चलते पानी कभी हरियाणा से मँगाया जाता है तो कभी भाखड़ा से। यहाँ यमुना का पानी पीने योग्य नहीं रह गया है, साथ ही भू-जल स्तर भी तेजी से नीचे जा रहा है। जाड़े में ही यहाँ पानी का ऐसा संकट है कि दिल्ली में रहने वाले मध्यम वर्ग के लोग रोजाना पानी खरीद कर पी रहे हैं। 



पेयजल संकट पर गिद्ध नजर पड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की और इन्होंने प्यास की कीमत भुनाना शुरू कर दिया। मीडिया और अन्य प्रचार माध्यमों द्वारा पानी के निजीकरण की बात उठाई जाने लगी, ताकि बड़े से बड़ा पानी का बाजार खड़ा किया जा सके। लेकिन यह समझना बुद्धि से परे लगता है कि सूखते जल स्रोतों का समाधान निजीकरण में कैसे हो सकता है? कहीं कोई उदाहरण नहीं मिलता कि कम्पनियाँ पेयजल स्रोतों को जीवित करने का काम कर रही हैं या बर्बाद होते पेयजल को संरक्षित करने का प्रयास कर रही है।
Similar questions