Paariwaarik samaajik sanrachna
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सामाजिक जीवन और बदलती पारिवारिक संरचना व संस्कार मनुष्य जीवन ईश्वर का दिया एक अनमोल उपहार है। इसे व्यर्थ न जाने देने की हमेशा नसीहतें दी जाती हैं। अफसोस आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में मनुष्य के लिए नसीहतों का कोई मूल्य नहीं रहा। अर्थ प्रधान युग में जीवन पर अर्थ इस कदर हावी हो गया है कि एक पढ़ा-लिखा, शिक्षित-समझदार, स्वावलम्बी हर तरह की सुविधाओं से पूर्ण होने के बाद भी संस्कारो से परिपूर्ण नही है !
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