पचि कबीर के दोहे???
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गुरु सो प्रीतिनिवाहिये, जेहि तत निबहै संत। प्रेम बिना ढिग दूर है, प्रेम निकट गुरु कंत॥९॥ भावार्थ: जैसे बने वैसे गुरु – सन्तो को प्रेम का निर्वाह करो। निकट होते हुआ भी प्रेम बिना वो दूर हैं, और यदि प्रेम है, तो गुरु – स्वामी पास ही हैं।
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