पछतावा में प्रत्यय है
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जो प्रत्यय मूल धातुओँ अर्थात् क्रिया पद के मूल स्वरूप के अन्त मेँ जुड़कर नये शब्द का निर्माण करते हैँ, उन्हेँ कृदन्त या कृत् प्रत्यय कहते हैँ। धातु या क्रिया के अन्त मेँ जुड़ने से बनने वाले शब्द संज्ञा या विशेषण होते हैँ।
1. कृदन्त प्रत्यय
कृदन्त प्रत्यय के निम्नलिखित तीन भेद होते हैँ –
(1) कर्त्तृवाचक कृदन्त – वे प्रत्यय जो कर्तावाचक शब्द बनाते हैँ, कर्त्तृवाचक कृदन्त कहलाते हैँ। जैसे – प्रत्यय – शब्द–रूप
• तृ (ता) – कर्त्ता, नेता, भ्राता, पिता, कृत, दाता, ध्याता, ज्ञाता।
• अक – पाठक, लेखक, पालक, विचारक, गायक।
(2) विशेषणवाचक कृदन्त – जो प्रत्यय क्रियापद से विशेषण शब्द की रचना करते हैँ, विशेषणवाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• त – आगत, विगत, विश्रुत, कृत।
• तव्य – कर्तव्य, गन्तव्य, ध्यातव्य।
• य – नृत्य, पूज्य, स्तुत्य, खाद्य।
• अनीय – पठनीय, पूजनीय, स्मरणीय, उल्लेखनीय, शोचनीय।
(3) भाववाचक कृदन्त – वे प्रत्यय जो क्रिया से भाववाचक संज्ञा का निर्माण करते हैँ, भाववाचक कृदन्त कहलाते हैँ। जैसे –
• अन – लेखन, पठन, हवन, गमन।
• ति – गति, मति, रति।
• अ – जय, लाभ, लेख, विचार।
2. तद्धित प्रत्यय –
जो प्रत्यय क्रिया पदोँ (धातुओँ) के अतिरिक्त मूल संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दोँ के अन्त मेँ जुड़कर नया शब्द बनाते हैँ, उन्हेँ तद्धित प्रत्यय कहते हैँ। जैसे— गुरु, मनुष्य, चतुर, कवि शब्दोँ मेँ क्रमशः त्व, ता, तर, ता प्रत्यय जोड़ने पर गुरुत्व, मनुष्यता, चतुरतर, कविता शब्द बनते हैँ।
तद्धित प्रत्यय के छः भेद हैँ –
(1) भाववाचक तद्धित प्रत्यय – भाववाचक दद्धित से भाव प्रकट होता है। इसमेँ प्रत्यय लगने पर कहीँ–कहीँ पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है। जैसे –
प्रत्यय — शब्द–रूप
• अव – लाघव, गौरव, पाटव।
• त्व – महत्त्व, गुरुत्व, लघुत्व।
• ता – लघुता, गुरुता, मनुष्यता, समता, कविता।
• इमा – महिमा, गरिमा, लघिमा, लालिमा।
• य – पांडित्य, धैर्य, चातुर्य, माधुर्य, सौन्दर्य।
(2) सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय – सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय से सम्बन्ध का बोध होता है। इसमेँ भी कहीँ–कहीँ पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है। जैसे –
• अ – शैव, वैष्णव, तैल, पार्थिव।
• इक – लौकिक, धार्मिक, वार्षिक, ऐतिहासिक।
• इत – पीड़ित, प्रचलित, दुःखित, मोहित।
• इम – स्वर्णिम, अन्तिम, रक्तिम।
• इल – जटिल, फेनिल, बोझिल, पंकिल।
• ईय – भारतीय, प्रान्तीय, नाटकीय, भवदीय।
• य – ग्राम्य, काम्य, हास्य, भव्य।
(3) अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय – इनसे अपत्य अर्थात् सन्तान या वंश मेँ उत्पन्न हुए व्यक्ति का बोध होता है। अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय मेँ भी कहीँ–कहीँ पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है। जैसे –
• अ – पार्थ, पाण्डव, माधव, राघव, भार्गव।
• इ – दाशरथि, मारुति, सौमित्र।
• य – गालव्य, पौलस्त्य, शाक्य, गार्ग्य।
• एय – वार्ष्णेय, कौन्तेय, गांगेय, राधेय।
(4) पूर्णतावाचक तद्धित प्रत्यय – इसमेँ संख्या की पूर्णता का बोध होता है। जैसे –
• म – प्रथम, पंचम, सप्तम, नवम, दशम।
• थ/ठ – चतुर्थ, षष्ठ।
• तीय – द्वितीय, तृतीय।
(5) तारतम्यवाचक तद्धित प्रत्यय – दो या दो से अधिक वस्तुओँ मेँ श्रेष्ठता बतलाने के लिए तारतम्यवाचक तद्धित प्रत्यय लगता है। जैसे –
• तर – अधिकतर, गुरुतर, लघुतर।
• तम – सुन्दरतम, अधिकतम, लघुतम।
• ईय – गरीय, वरीय, लघीय।
• इष्ठ – गरिष्ठ, वरिष्ठ, कनिष्ठ।
(6) गुणवाचक तद्धित प्रत्यय – गुणवाचक तद्धित प्रत्यय से संज्ञा शब्द गुणवाची बन जाते हैँ। जैसे –
• वान् – धनवान्, विद्वान्, बलवान्।
• मान् – बुद्धिमान्, शक्तिमान्, गतिमान्, आयुष्मान्।
• त्य – पाश्चात्य, पौर्वात्य, दक्षिणात्य।
• आलु – कृपालु, दयालु, शंकालु।
• ई – विद्यार्थी, क्रोधी, धनी, लोभी, गुणी।
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