Hindi, asked by prabh5, 1 year ago

padhne ka anand anuched

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Answered by malikamrita09
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किताबी कीड़ा यह ऐसे व्यक्ति के लिए बोला जाता है, जिसे पढ़ने की बहुत धुन होती है। वह स्वयं को किताबों के मध्य प्रसन्न पाता है। उसका उद्देश्य होता है कि वह पढ़ाई मैं सदैव प्रथम आए। इस तरह के विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए कहने की आवश्यकता नहीं होती है। वह स्वयं ही पढ़ाई करते हुए दिखाई देते हैं। एक विद्यार्थी के लिए बहुत आवश्यक है कि वह अपने पाठ्यक्रम तथा अन्य ज्ञानवर्धक किताबों का अध्ययन पूरे मन से करे। मन से की गई पढ़ाई उसे सदैव आनंद देती है। यह ऐसा आनंद है, जिसे एक बार प्राप्त हो गया, तो उसे अन्य किसी आनंद की आवश्यकता नहीं पड़ती है। परन्तु प्राय: विद्यार्थियों में इस प्रकार के आनंद की कमी देखी जाती है। वह अपने पाठ्यक्रम को बड़े दुखी होकर पढ़ते हैं। उनके लिए यह मात्र बोझ है, जो हर वर्ष बदलता रहता है। किताबी कीड़े विद्यार्थी के लिए ऐसा नहीं होता। वह इसे ही आनंद मानता है। यद्पि अधिक पढ़ाई करते रहना भी अच्छा नहीं परन्तु ज्ञान अर्जित करना मनुष्य के लिए फलदायी होता है। बस उसे थोड़ा खेलकूद करके स्वयं को स्वस्थ बनाना भी आवश्यक होता है। पढ़ाई से हमारे जीवन में नए स्त्रोत का आगमन होता है। हमें सही मार्ग मिलता है अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए। आनन्दित होकर की हुई पढ़ाई हमारे अन्तिम समय तक हमारे साथ रहती है। जिससे हम हमारे जीवन में आने वाली कठीन परिस्थितियों में भी अपना भला बुरा बखुबी समझ पाते हैं । और किसी भी मार्ग पर जाने से खुद को रोक पाते हैं। इसलिये हमें आनन्दित होकर पढ़ाई करना चाहिए ना कि उसे बोझ समझकर।
Answered by franktheruler
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पढ़ने का आनंद अनुच्छेद निम्न प्रकार से लिखा गया है।

किताबें पढ़ना गुणी ज्ञानी लोगों का काम समझा जाता है लेकिन ऐसी बात नहीं । पुस्तके हजारों प्रकार की होती है। ज्ञानवर्धक पुस्तकें, मनोरंजन की पुस्तके , पहेलियां बूझने की पुस्तके आदि।

जो लोग दिन भर पढ़ते रहते है उन्हें किताबी कीड़ा कहा जाता है। एक कहावत कहीं जाती है बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद या फिर कह सकते है कि गूंगा कैसे बता सकता है कि कोई बात उसे इतनी पसंद है।उसी प्रकार जिन्हे पढ़ने का शौक होता है उन्हें ही किताबो का महत्व पता होता है।

भारत के राष्ट्रपति रह चुके ए. पी. जे अब्दुल कलाम को किताबे पढ़ने का बहुत शौक होता था। वे दूसरों भी खाली समय में किताबे पढ़ने की हिदायत देते थे। वे कहते थे कि किताबें ही सच्चे मित्र होते है।

भारत में महान लेखक व कवियों का जन्म हुआ है जैसे मुंशी प्रेमचंद जी , हरिवंश राय बच्चन जी, निराला जी, सुमित्रानंदन पंत जी आदि। इन सभी का जीवन तो किताबों के बीच ही बीत गया । इन्होंने वचन व लेखन के अतिरिक्त किसी भी प्रकार की चीजों में अपना समय नहीं गंवाया।

आज समय बदल रहा है किताबों का स्थान मोबाइल फोन ने के लिए है , ई बुक्स का प्रचलन हो गया है लेकिन किताब शब्द सुनते ही आंखो के आगे कागज से बनी , सुंदर कवर से सजी किताब ही दिखती है। आज भी पढ़ने का वास्तविक आंनद तो किताब पढ़ने से ही आता है।

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