) पग नूपुर औ पहुँची कर कंजनि, मंजु बनी मनिमाल हिए।नवनील कलेवर पीत अँगा, झलकै पुलकैं नृप गोद लिए।अरबिंद सो आनन रूप मरंद, अनंदित लोचन भंग पिए।मन में न बस्यो अस बालक जौ, तुलसी जग में फल कौन जिए।।तन की दुति स्याम सरोरुह, लोचन कंज की मंजुलताई हरैं।
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