पग नूपुर औ पहुँची करकंजनि मंजु बनी मनिमाल हिएँ।
नवनीत कलेवर पीत झंगा झलकै पुलकै नृपु गोद लिएँ।
अरबिंदु सो आननु रूप मरंदु अनंदित लोचन-भंग पिएँ।
मनमो न बस्यौ अस बालकु जौं तुलसी जग में फलु कौन जिएँ।।3।।
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भक्ति रस
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