Hindi, asked by jay96339, 11 months ago

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चित्रपट संगीत का वा तात्पर्य है।
वापर संस्ति क्षेत्र की समाधी किसे कहा जाता है
कालका मोशवर जी का वास्तविक नाम क्या है?
लाता डीलोकप्रियता का मुख्य क्या है।
लकमा गांधारी कार है​

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Answered by bhardwajansh2006
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Answer:

भारतीय संगीत में सुगम संगीत विधा अत्यंत प्रचलित विधा है क्योंकि यह जन सामान्य को जोडने में अधिक सहायक है। सुगम संगीत में फिल्मी संगीत विधा इसकी सबसे प्रचलित विधा है जिसने संपूर्ण विश्व पर अपना एकाधिकार किया है फिल्मी संगीत भारतीय संगीत का अत्यंत प्रचलित स्वरुप है यदि ऐसा कहे तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी।

भारतीय चित्रपट संगीत मात्र एक नाम नहीं है। यह एक दीर्घकालीन यात्रा है; जिसने अपने काल खण्ड में अनेकों बार उतार चढाव देखे, फिल्मी संगीत, संगीत को रोचक, मनोरंजक एवं जनसामान्य तक पहुंचाने का एक सशक्त साधन है और इसी आधार पर इसकी यात्रा अनन्त काल से चलकर आज अपने स्वणीय वर्तमान तक पहुंची है।

भारतीय चित्रपटीय संगीत का प्रारंभ उस कालखण्ड से आरंभ हुआ जब चित्रपट के नायक एवं नायिका स्वयं ही अपने गीत गाते और अभिनय करते। कला के प्रति ऐसे निष्ठावान कलाकारों के आधार पर फिल्मी संगीत दुनिया की नींव रखी गई। ऐसे कला के प्रति समर्पित कलाकारों द्वारा ही यह श्रृखंला आगे की ओर अग्रसर हुई, इस श्रृखंला में लता मंगेशकर भी ऐसी ही कलाकार हैं जिन्होंने अपने प्रारंभिक दिनों में अभिनय और गायन साथ किया। पूर्व काल में ऐसे कलाकारों का चयन होता था, जिन्हें अभिनय, नृत्य, संगीत तीनों में महारत हो, क्योंकि वह काल फिल्मी दृष्टि से उतना अनुकूल नहीं था। परंतु उसी समय एक नवीन फिल्मी दुनिया की नींव रखी जा रही थी, जिसमें मनोरंजन के साथ अच्छे संगीत को भी लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया गया।

इसके पश्चात समय अपनी गति से चलता रहा और परिस्थितियां बदलती गईं जिसके फलस्वरुप एक काल आया पार्श्व गायन का। इसमें अभिनय एक कलाकार करते थे और गायन दूसरे कलाकार। जिससे अत्यंत सुमधुर आवाजें हमारे समक्ष आईं और फिल्मी दुनिया में संगीत मात्रा का व्यास और भी विस्तृत होता गया। जिसमें अनेकों कलाकारों ने अपने जीवन का योगदान इस दुनिया को समृद्ध बनाने में किया।

जिस प्रकार एक चित्रपट को बनाने के लिये एक कहानीकार निर्देशक, संवाद लेखक, नायक-नायिका आदि का होना आवश्यक है, उसी प्रकार संगीत निर्मित करते समय भी गीतकार, संगीतकार, गायक का होना आवश्यक है। इन्हीं कारणों से यह फिल्मी दुनिया और भी अधिक समृद्ध होती चली गई।

हिन्दी फिल्म संगीत में प्रथम फिल्म आलम आरा की १९३१ में रिर्कोडिंग हुई। इसके बाद यह सिलसिला चल निकला। पहले गीतों की रिर्कोडिंग बडे ग्रामोफोन पर सभी संगीत कलाकारों को साथ बिठाकर की जाती थी। आज के दशक में यह सब बदल चुका है। अब डिटल रिकॉर्डिंग का जमाना है। तकनीकों अधिकता से काम आसान भी हुए हैं।

इस सांगीतिक यात्रा में अनेक कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया और फिल्मी दुनिया में अपना स्थान बनाया। साठ से सत्तर के दशक में संगीतकार नौशाद, ओ.पी. नैयर, मदन मोहन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, एस.डी. बर्मन, रविन्द्र जैन आदि ने अपनी अलग पहचान बनाई। इनमें से प्रत्येक के संगीत की अपनी-अपनी विशेषता रही। अस्सी के बाद जतिन-ललित, आदेश श्रीवास्तव आदि ने तथा वर्तमान में ए.आर. रहमान, विशाल शेखर, सलीम सुलेमान, शंकर-एहसान-लॉय आदि ऐसे प्रमुख संगीतकार हैं जिन्होंने अपने संगीत से पूर्ण विश्व में ख्याति अर्जित की।

इसी प्रकार गायक गायिकाएं भी प्रत्येक दशक में नवीन आए और उन्होंने भी अपना स्थान बनाया। मोहम्मद रफी, मन्ना डे, किशोर कुमार, मुकेश, सुरेश वाडेकर, उदित नारायण, कुमार शानू, सोनू निगम, शान आदि ने अपनी सुरीली आवाज से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। वर्तमान में अर्जित सिंह, राहत फतेहअली खान आदि गायकों का जमाना है।

इसी श्रृंखला में गायिकाओं में लता मंगेशकर, आशा भोसले, सुमन कल्याणपुर, कविता कृष्णमूर्ति, साधना सरगम, श्रेया घोषाल, सुनिधी चौहान, रेखा भारद्वाज आदि गायिकाओं ने फिल्मी संगीत को समृद्ध किया है।

फिल्मी संगीत यात्रा के कई दशक बीत चुके हैं फिर भी वर्तमान मे भी यह लोगों के दिलों पर छाया हुआ है। संगीत की दुनिया में इसने अपना वर्चस्व कायम रखा हैै। प्रत्येक दशक की अपनी एक पहचान अपनी एक महक, अपने सुर, अपना एक विस्तार तथा अपना एक इतिहास होता है। यह सभी फिल्म संगीत के उस दर के हस्ताक्षर हैं। प्रत्येक दशक में किस प्रकार चित्रपट संगीत की यात्रा अग्रसर हुई इसकी जानकारी आपको हमारे आगामी अंकों में प्राप्त होगी।

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