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निबंध- राष्ट्रीय कार्यकर्मी के प्रचार प्रसार पे हिंदी की भूमिका
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इंटरनेट पर हिन्दी का दायरा ब्लॉग्स को लांघ चुका है। हिन्दी अखबारों की वेबसाइट्स ने करोड़ों नए हिन्दी पाठकों को अपने साथ जोड़कर हिन्दी को और समृद्ध बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इंटरनेट पर हिन्दी के बढ़ते चलन से माना जा रहा है कि अगले साल तक हिन्दी में इंटरनेट उपयोग करने वालों की संख्या अंग्रेजी में इसका उपयोग करने वालों से ज्यादा हो जाएगी। सर्च इंजन गूगल का मानना है कि हिन्दी में इंटरनेट पर सामग्री पढ़ने वाले प्रतिवर्ष 94 फीसदी बढ़ रहे हैं जबकि अंग्रेजी में यह दर हर साल 17 फीसदी घट रही है। गूगल के अनुसार 2021 तक इंटरनेट पर 20.1 करोड़ लोग हिन्दी का उपयोग करने लगेंगे। यह हिन्दी के प्रचार-प्रसार और वैश्विक स्वीकार्यता का ही परिणाम है कि आज हिन्दी अपनी तमाम प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़ते हुए लोकप्रियता का आसमान छू रही है। आज दुनिया के 176 विश्वविद्यालयों में हिन्दी विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। हिन्दी वहां अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान की भाषा भी बन चुकी है। अमेरिका के ही 30 से भी ज्यादा विश्वविद्यालयों में भाषायी पाठ्यक्रमों में हिन्दी को महत्वपूर्ण दर्जा मिला हुआ है। दक्षिण प्रशान्त महासागर के देश फिजी में तो हिन्दी को राजभाषा का आधिकारिक दर्जा मिला हुआ है। फिजी में इसे ‘फिजियन हिन्दी’ अथवा ‘फिजियन हिन्दुस्तानी’ भी कहा जाता है, जो अवधी, भोजपुरी और अन्य बोलियों का मिला-जुला रूप है। विश्व में लगभग 6900 मातृभाषा बोली जाती हैं, जिनमें से 35-40 फीसदी अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रही हैं।भारत में हर साल 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। नागपुर में 10 जनवरी 1975 को पहली बार विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। सम्मेलन में 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इसके बाद मॉरीशस, यूनाइटेड किंगडम, त्रिनिदाद, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि में भी विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया। भारत में प्रतिवर्ष ‘विश्व हिन्दी दिवस’ मनाए जाने की घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने वर्ष 2006 में की थी। 10 जनवरी का दिन इसलिए तय किया गया क्योंकि पहली बार इसी दिन विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया गया था।
विश्व हिन्दी दिवस सही मायने में हिन्दी की महानता के प्रचार-प्रसार का एक सशक्त माध्यम है। इस अवसर पर जहां विदेश मंत्रालय की ओर से विदेशों में स्थित भारत दूतावासों में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, वहीं प्रवासी भारतीय और भारतीय मूल के लोग भी अपने-अपने देशों में हिन्दी के सम्मान में तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित करते हैं। आज भले ही हमारे देश में ही कुछ लोग हिन्दी के उपयोग को लेकर कभी-कभार बेवजह का विवाद खड़ा कर अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास करते दिखते हैं लेकिन हर भारतीय के लिए गर्व की बात यह है कि दुनियाभर में अब हिन्दी को चाहने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जनसम्पर्क के लिए हिन्दी को ही सबसे उपयोगी भाषा मानते थे। वर्ष 1917 का एक ऐसा किस्सा सामने आता है, जब कलकत्ता में कांग्रेस अधिवेशन के मौके पर बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रभाषा प्रचार संबंधी कॉन्फ्रेंस में अंग्रेजी में भाषण दिया था और गांधी जी ने उनका वह भाषण सुनने के पश्चात् उन्हें हिन्दी का महत्व समझाते हुए कहा था कि वह ऐसा कोई कारण नहीं समझते कि हम अपने देशवासियों के साथ अपनी ही भाषा में बात न करें। गांधी जी ने कहा था कि अपने लोगों के दिलों तक हम वास्तव में अपनी ही भाषा के जरिये पहुंच सकते हैं।
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