पहाडों पर रहने वाले लोगों कि जिवन शैली कि जानकारी प्राप्त करके अपनी जीवन शैली से उसकी तुलना करते हुऐ लिखिऐ
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जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : आज मोबाइल फोन, सिनेमा, टेलीवीजन आदि में भले ही 21वीं सदी के दौर व तारे जमीं पर जैसी परिकल्पना पेश की जा रही हो, लेकिन यथार्थ की धरती पर इंसान भी जमीं पर पैर रखना पसंद नहीं करते हैं। जी हां! आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और ओडिशा की सीमा से सटे बद्रांचलम् में पहाड़ के ऊपर एक अनोखी दुनिया बसी है। इस दुनिया के बाशिंदों को जमीन पर रहने वाले लोगों का भरोसा नहीं है।
साइबर की दुनिया से अलग प्रकृति की गोद में बसेरा बनाकर रहने वाली इस जनजाति को कोंडारेडी के नाम से जाना जाता है। इनकी कुल आबादी 700 के करीब है। यदि गंभीर रूप से बीमार न हों, शादी-विवाह के लिए गहने की जरूरत न पडे़ तो ये लोग पूरे साल पहाड़ से नीचे नहीं उतरते। सुनकर शायद यकीन न हो लेकिन यह सच है। यह जनजाति पहाड़ के ऊपर, लकड़ी और बांस से अपना घर बनाकर रहती है। जमीन से ऊंचाई इतनी होती है कि ऊपर चढ़ने वाले को ढाई घंटे से अधिक का समय लग जाए। ये लोग आसपास के झाड़-झंखार को जलाकर कृषि के लिए खाद पैदा करते हैं। फिर उसमें बीज डालकर फसल लगने का इंतजार करते हैं। अनाज के रूप में ज्वार उपजाते हैं और पूरे साल इसी से इनका भोजन चलता है। करीब तीन से चार साल तक एक पहाड़ पर रहने के बाद ये अपना ठिकाना बदल देते हैं।
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