पहिले घन आनंद सींचि सुजान कही बतियां अति प्यार-पगी। अब लाय बियोग की लाय, बलाय बढ़ाय बिसाय-दगानि दगी। अँखियाँ दुखियानी कुबानि परी, न कहुँ लगै, कौन घरी सु लगी। मति दौरि थकी, न लहै ठिक ठौर, अमोहि के मोह-मिठास ठगी
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