पहाड़ी लोगों का जीवन मैदानी जीवन से अधिक संघर्षपूर्ण होता है ।'साना-साना हाथ जोड़ि' पाठ के आधार पर उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए ।
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पहाड़ी जीवन की कठिनाई इसी बात से लगाई जा सकती है कि यहाँ पर पहाड़ स्थित हैं। जहाँ पर पहाड़ होगें, वहाँ पर यातायात के साधन लोगों को उपलब्ध करवाना कठिन हो जाता है। जहाँ मैदानी इलाकों में सड़कें बनाने में कुछ महीने का समय लगता है, वहीं पहाड़ों में इसी काम को करने में दो से पाँच साल लग जाते हैं। सड़क बनाने में यहाँ आधुनिक साधनों से सहायता नहीं ली जा सकती है। लोगों द्वारा ही यहाँ पर कार्य करवाया जाता है। संकरों रास्तों को बड़ा बनाने में ही कई महीने लग जाते हैं। यही कारण है कि यहाँ विकास की दर कम होती है। यातायात की व्यवस्था जहाँ स्थापित हो गई, तो समझ लीजिए कि विकास रफ़्तार पकड़ लेता है। फिर उसके विकास को कोई रोक नहीं सकता है।
पहाड़ी लोगों का जीवन भी इन कारणों से बहुत कष्टप्रद होता है। सीढ़ीनुमा खेतों के कारण खेती अधिक नहीं होती। यदि बारिश आवश्यकता से अधिक हो गई, तो पानी उनकी मेहनत को भी बहा ले जाता है और यदि नहीं हुई, तो फसल सूख जाती है। वहाँ पर गाय तथा भैसें भी अधिक दुधारू नहीं होती है। कारण लोगों को मज़दूरी करके जीवनयापन करना पड़ता है। खेतों में होने वाली मेहनत कमर तोड़ होती है। जानवरों के रख-रखाव के लिए औरतों को पूरे-पूरे दिन जंगलों में भटकना पड़ता है, तब जाकर वे गाय-भैसों के लिए चारे का इंतज़ाम कर पाती हैं।
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आशा है कि मेरा उत्तर आपको संतुष्ट करेगा ।
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