पहाड़ी में तरस खाकर शमशान से क्या कहा
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तीसरी पत्नी के देहान्त पर युवक का क्रंदन कंठस्थ पाठ की तरह लगने लगा था। मनुष्य के अलौकिक प्रेम की जिस भावना को श्मशान अपने हृदय में बडे यत्न से सँजोए बैठा था, उसका वही हृदय इस दृश्य से पत्थर हो गया। श्मशान की हालत देखकर पहाड़ी ने दिलासा देते हुए कहा, जो इंसान प्रेम करता है उसे जीवन भी कम प्यारा नहीं। वह प्रेम की स्मृति, कल्पना और आध्यात्मिक भावना पर ही जिंदा नहीं रहता। जीवन की पूर्णता के लिए वह फिर प्रेम करता है। स्वयं जीवित रहने की ललक में हर वियोग को झेल लेता है, व्यथा सह लेता है क्यों कि मनुष्य केवल अपने आपसे अधिक प्रेम करता है।
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तीसरी पत्नी के देहान्त पर युवक का क्रंदन कंठस्थ पाठ की तरह लगने लगा था। मनुष्य के अलौकिक प्रेम की जिस भावना को श्मशान अपने हृदय में बडे यत्न से सँजोए बैठा था, उसका वही हृदय इस दृश्य से पत्थर हो गया। श्मशान की हालत देखकर पहाड़ी ने दिलासा देते हुए कहा, जो इंसान प्रेम करता है उसे जीवन भी कम प्यारा नहीं। वह प्रेम की स्मृति, कल्पना और आध्यात्मिक भावना पर ही जिंदा नहीं रहता। जीवन की पूर्णता के लिए वह फिर प्रेम करता है। स्वयं जीवित रहने की ललक में हर वियोग को झेल लेता है, व्यथा सह लेता है क्यों कि मनुष्य केवल अपने आपसे अधिक प्रेम करता है।
Explanation:
तीसरी पत्नी के देहान्त पर युवक का क्रंदन कंठस्थ पाठ की तरह लगने लगा था। मनुष्य के अलौकिक प्रेम की जिस भावना को श्मशान अपने हृदय में बडे यत्न से सँजोए बैठा था, उसका वही हृदय इस दृश्य से पत्थर हो गया। श्मशान की हालत देखकर पहाड़ी ने दिलासा देते हुए कहा, जो इंसान प्रेम करता है उसे जीवन भी कम प्यारा नहीं। वह प्रेम की स्मृति, कल्पना और आध्यात्मिक भावना पर ही जिंदा नहीं रहता। जीवन की पूर्णता के लिए वह फिर प्रेम करता है। स्वयं जीवित रहने की ललक में हर वियोग को झेल लेता है, व्यथा सह लेता है क्यों कि मनुष्य केवल अपने आपसे अधिक प्रेम करता है।