पहाड़ों पर घूमते हुए नेहरू जी किसके साथ कहाँ तक पहुँच गए?
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1916 में मेरी शादी वसंत पंचमी को हुई थी। उसी साल गर्मी में हमने कुछ महीने कश्मीर में बिताए। मैंने अपने परिवार को श्रीनगर की घाटी में छोड़ दिया और अपने एक तयेरे भाई के साथ कई हफ्ते पहाड़ों में घूमता रहा। इस यात्रा में मुझे एक बड़ा दिल को कंपा देने वाला अनुभव हुआ। जोजी- ला घाटी से आगे सफर करते हुए एक जगह हमें बताया गया कि अमरनाथ गुफा बस आठ मील दूर है। हमने वहां जाने की ठान ली और अपने डेरे-तंबू, जो 11,500 फीट की ऊंचाई पर थे, वहीं छोड़ दिए। इसके बाद हम एक छोटे से दल के साथ पहाड़ पर चढ़ने लगे। हम लोगों ने रस्सियों की सांकल में एक-दूसरे से बंधे हुए कई बर्फीली नदियों को पार किया। हमारी मुश्किलें बढ़ती गईं तथा सांस लेने में भी कठिनाई होने लगी।
हम लोग एक ऊंची बर्फीली जगह पर पहुंचे, जहां एक हिम सरोवर था। अब हमें इस हिम सरोवर, जो करीब आधा मील लंबा था, को पार कर नीचे गुफा की ओर जाना था। इस राह में बड़ा धोखा था, क्योंकि वहां दरारें बहुत थीं और ताजी गिरने वाली बर्फ दरारों को ढंक देती थी। इस नई बर्फ ने ही मेरा करीब-करीब खात्मा कर दिया होता। मैंने जैसे ही उस पर पैर रखा, वह नीचे को खिसक गई और मैं धम्म से एक दरार में जा गिरा। लेकिन मेरे हाथ से रस्सी नहीं छूटी और मैं दरार की बाजू को पकड़े रहा। धीरे-धीरे दल के साथियों ने मुझे ऊपर खींचा। इस घटना के बाद भी हम आगे बढ़े, लेकिन दरारों की तादाद और उनकी चौड़ाई आगे जाकर और भी बढ़ गई। इनमें से कुछ को पार करने के साधन हमारे पास नहीं थे, इसलिए अंत में हम लोग थकेहारे, हताश
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