पहले ऐसा नहीं था। व्यापारियों की साख बनी हुई थी) यों तौल में चाहे
छटाँक-आध छटाँक कस लें। (लेकिन आप उन्हें पाँच की जगह भूल से दस
के नोट दे आते, तो आपको घबराने की कोई ज़रूरत न थी। आपके रुपा
सुरक्षित थे। मुझे याद है, (एक बार मैंने मुहर्रम के मेले में एक दूकानदार से
एक पैसे की रेवड़ियाँ ली थीं और पैसे की जगह अठन्नी दे आया था। घर
आकर जब अपनी भूल मालूम हुई तो दूकानदार के पास दौड़ा गया। आशा
नहीं थी कि वह अठन्नी लौटायेगा, पर लेकिन उसने प्रसन्नचित्त से अठन्नी लौटा
दी और उलटे मुझसे क्षमा मांगी। यहाँ कश्मीरी सेब के नाम से सड़े हुए सेब
बेचे जाते हैं। मुझे आशा है, पाठक बाज़ार में जाकर मेरी तरह आँखें न बंद
कर लिया करेंगे। नहीं तो उन्हें भी कश्मीरी सेब ही मिलेंगे।
kannada anuvad
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