पहला अध्यापक summary in 150 words
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कुरकुरेव गाँव जो पहाड़ियों के दामन में बसा है आज वहाँ एक स्कूल का उद्घाटन है जिसमें आल्तीनाई आमंत्रित है जो कि एक विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र पढ़ाती हैं, विभाग की संचालिका है और अक्सर अकादमी के काम के लिए विदेश आती जाती रहती हैं. लेकिन इसका वास्तविक हकदार तो दूइशेन है जिसने अल्तीनाई के साथ साथ इस अशिक्षित गाँव के लोगों को शिक्षा दी वही तो सच्चा अध्यापक है, इस गाँव का पहला अध्यापक है. आज दूइशेन डाकिए का काम कर रहा है और तार ला रहा ताकि समारोह में उन्हें समय पर पढ़ा जा सके. इस मौके पर उसे सब भूल गये हैं बस जो नहीं भूली वह है अल्तीनाई. भूलती भी कैसी आल्तीनाई आज जो कुछ भी है वह दूइशेन के प्रयासों का परिणाम ही तो है. पिछली सभी घटनाएँ अल्तीनाई के मष्तिष्क – पटल पर कोलाहल मचाने लगती हैं, यद्यपि वे गाँव में कुछ दिन ठहरने का ख्याल कर आई थी लेकिन उनका समारोह में भी मन नहीं लगता और वे गाड़ी पकड़ स्को की ओर रवाना हो जाती हैं.
वहां से वह पत्र लिखती हैं, जिसमें दूइशेन के संघर्षों, प्रयासों का जिक्र है.
दूइशेन ऐसे गाँव में स्कूल खोलने का स्वप्न लिए था जहाँ लोगों के लिए पढाई और स्कूल जैसे शब्द उनकी कल्पनाओं से परे थे. जहाँ के लोगों का दायरा सीमित होता है – “हम किसान हैं, मेहनत करके जिन्दगी बसर करते हैं, हमारी कुदाल हमें रोटी देती है. हमारे बच्चे भी इसी तरह बसर करेंगे. उन्हें पढ़ने लिखने की कोई जरूरत नहीं है. पढ़ाई की जरूरत होती है अफसरों-अधिकारीयों को, हम तो सीधे-साधे लोग हैं. हमें उलटे-सीधे फेर में नहीं डालो.”(देखें पृष्ठ – 14) दूइसेन का यह सवाल कि क्या आप सचमुच अपने बच्चों की शिक्षा के खिलाफ हैं जवाब अनुकूल न मिलने पर उसके चेहरे का रंग उड़ जाता है. वह कड़क आवाज में उस पर्चे को पढता है जिसमें बच्चों की तालीम के बारे में लिखा गया है, जिसमें सोवियत सत्ता की मुहर लगी है. गाँव वाले शांत सर झुकाए खड़े रह जाते हैं वह धीमी आवाज में कहता है – “हम गरीब किसान हैं… हमें हमेशा रौंदा गया है, हमेशा हमारा अपमान किया गया हैं. अब सोवियत सत