पहले हमें उदर की चिंता थी न कदापि सताती,
माता सम थी प्रकृति हमारी पालन करती जाती।
हमको भाई का करना उपकार नहीं क्या होगा,
भाई पर भाई का कुछ अधिकार नहीं क्या होगा। arth likhe
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अन्यायी नृप के दंडों से यथा लोग दुख पाते । ... वे हैं सुख साधन से पूरित सुघर घरों के वासी, इनके टूटे-फूटे घर में छाई सदा उदासी । पहले हमें उदर की चिंता थी न कदापि सताती, माता सम थी प्रकृति हमारी पालन करती जाती ।। हमको भाई का करना उपकार नहीं क्या होगा, भाई पर भाई का कुछ अधिकार नहीं क्या होगा ।
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