Hindi, asked by soumyadiptaacharya, 8 months ago

पहलवान की ढोलक कथा का सार​

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Answered by Anonymous
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कहानी ‘पहलवान की ढोलक’ में कहानी के मुख्य पात्र लुट्टन के माता-पिता का देहांत उसके बचपन में ही हो गया था। अनाथ लुट्टन को उसकी विधवा सास ने पाल-पोसकर बड़ा किया था। उसकी सास को गाँव वाले सताते थे। यह बात लुट्टन को बुरी लगती थी। उसने लोगों से बदला लेने के लिए कुश्ती के दाँव-पेंच सीखे और कसरत करके पहलवान बन गया।

एक बार लुट्टन श्यामनगर मेला देखने गया हुआ था। वहाँ पर ढोल की आवाज और कुश्ती के दाँव-पेंच देखकर उसने जोश में आकर नामी पहलवान चाँदसिंह को ही चुनौती दे दी। लुट्टन ने चाँद सिंह को हरा दिया और वहां का ‘राज पहलवान’ बन गया। इससे उसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फ़ैल गयी। वह १५ वर्षों तक अजेय बना रहा।

उसके दो पुत्र थे। उसने दोनों बेटों को भी पहलवानी के गुर सिखा दिये थे।

राजा की मृत्यु के बाद नए राजकुमार ने गद्दी संभाली। राजकुमार को घोड़ों की दौड़ का शौक था। मैनेजर ने नये राजा को भड़काया और पहलवान तथा उसके दोनों बेटों के भोजनखर्च को फ़िजूल खर्च बताया। नए राजा ने उसकी सलाह मानकर कुश्ती को बंद करवा दिया और पहलवान लुट्टनसिंह को उसके दोनों बेटों सहित महल से निकाल दिया।

राजदरबार से निकाल दिए जाने के बाद लुट्टन सिंह अपने दोनों बेटों के साथ गाँव में झोपड़ी बनाकर रहने लगा और गाँव के लड़कों को कुश्ती सिखाने लगा। लुट्टन का शिक्षण ज्यादा दिन नहीं चला। उसके दोनों बेटों को मजदूरी करनी पड़ी। इसी दौरान गाँव में अकाल और महामारी आ पड़ी। लोग मरने लगे और प्रतिदिन लाशें उठायी जाने लगीं।

पहलवान ने ऐसे भीषण समय में साहस नहीं खोया। वह महामारी से डरे हुए लोगों को ढोलक बजाकर बीमारी से लड़ने की ताकत देने लगा। एक दिन पहलवान के दोनों बेटे भी महामारी की चपेट में आकर मर गए, पर उस रात भी पहलवान ढोलक बजाकर लोगों को हिम्मत बंधाने का काम किया। पर इस घटना के चार-पाँच दिन बाद पहलवान की भी मौत हो जाती है।

पहलवान की ढोलक, व्यवस्था के बदलने के साथ लोक कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने की कहानी है। इस कहानी में लुट्टन नाम के पहलवान की हिम्मत और जिजीविषा का वर्णन किया गया है। व्यवस्था का कला के प्रति अनादर, भूख और महामारी, अजेय लुट्टन की पहलवानी को फ़टे ढोल में बदल देते हैं। यह कहानीअपने अंत के साथ यह सवाल करती है कि कला का कोई स्वतंत्र अस्तित्व भी है या पहीं अथवा कला व्यवस्था की मोहताज ही रहेगी ?

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