पहलवान लुट्टन सिंह को राजा साहब की कृपा-दृष्टि कब प्राप्त हुई ? वह उन सुविधाओं से वंचित कैसे हो गया ? 'पहलवान की ढोलक' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। लगभग 80-100 शब्दों में लिखिए।
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लुट्टन सिंह जब 9 साल का था तो उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। उसकी शादी बचपन में ही हो गई और वह अपनी सास के यहां पला-बढ़ा। यहां पर उसने बचपन से ही कुश्ती सीख ली थी। उसने श्याम नगर के मेले के दंगल में चांद नामक पहलवान को हरा दिया। जिससे राजा साहब ने प्रसन्न होकर उसे अपने दरबार में आश्रय दे दिया। वह दरबार का राज पहलवान बन गया। उसने अनेक नामी पहलवानों को हरा दिया और वह राजा का कृपा पात्र बन गया। राजा ने उसे हर सब सुख सुविधा प्रदान कर दी। वो लगभग 15 साल तक राजा के दरबार में रहा। उसने अपने बेटों को भी राजा के दरबार में लगा दिया।
उसने 15 तक साथ हर सुख-सविधा का उपभोग किया। राजा की मृत्यु होने के बाद राजा के पुत्र को पहलवानी में कोई रुचि नहीं थी। उसे घुड़सवारी का शौक था। इस कराण उसने पहलवान लुट्टन सिंह व उसके बेटों को दरबार से निकाल दिया। तब लुट्टन सिंह अपने बेटों सहित गांव आकर रहने लगा। यहाँ पर उसकी जीविका चलना मुश्किल हो गया और उसे भूखों मरने की नौबत आ गई। गांव में फैली महामारी ने उसके बेटों को अपनी चपेट में ले लिया और उसके दोनों बेटों मृत्यु हो गई। उसके कुछ दिनों बाद वह भी मर गया। इस तरह उसके आखिरी दिन बड़े बुरे बीते।